Today Topic- BHIC- 133 ( प्रशासनिक संरचना ) Unit- 7 भारत का इतिहास C. 1206- 1707 / bhic- 133- prashasanik sanrachna- unit- 7 bharat ka itihas
Subject- IGNOU- BAG- 2nd year
परिचय
अध्याय में हम शासक वर्ग, प्रजातीय संगठन, राजस्व के स्रोत, जीवन पद्धति आदि के बारे में चर्चा करेंगे।
दिल्ली सल्तनत और खिलाफत
पैगंबर हजरत मोहम्मद की मृत्यु के बाद खिलाफत नाम की संस्था का उदय हुआ जो इस्लामी व्यवस्था का समर्थक भी था, साथ ही मुस्लिम समुदाय का प्रमुख भी माना जाता था। कोई भी मुस्लिम खलीफा की अनुमति के बिना स्वतंत्र राज्य स्थापित नहीं कर सकता था। राज्य को वैधता प्राप्त कराने के लिए अनुमति लेना आवश्यक था
दिल्ली सल्तनत के अधीन केंद्रीय प्रशासन
इस्लामी व्यवस्था में खिलाफत की शक्ति कम होने के बाद ही सुल्तान का पद अस्तित्व में आया। अपने नागरिकों के लिए नियम बनाना तथा अपने नाम से सिक्के जारी करना सत्ता का प्रतीक था। अमीरों या कुलीनो के समर्थन के बिना सुल्तान का सत्ता पर अधिकार बनाए रखना कठिन होता था
विजारत वित्त
केंद्रीय प्रशासन में वित्त विभाग के प्रमुख के रूप में वजीर का स्थान था। वजीर अन्य विभागों का निरीक्षण करने का अधिकार रखता था राजस्व वसूल करना, व्यय पर नियंत्रण रखना, वेतन बांटना यह सभी काम विजारत विभाग के प्रमुख कार्य थे
दीवान-ए-अर्ज
दीवान-ए-अर्ज (सैन्य विभाग) का प्रमुख आरिज़ - ए - मुमालिक था जो सेना संबंधी कार्यों के लिए उत्तरदायी था। वह सुल्तान की सेना के विभाग और परिवहन विभाग की देखभाल और नियंत्रण करता था।
अन्य विभाग
दीवान-ए इंशा नामक विभाग के प्रमुख दबीर-ए-मुमालिक पर राज्य के पत्राचार तथा फरमान (शाही आदेश) जारी करने की जिम्मेदारी होती है। न्यायपालिका का प्रमुख स्वयं सुल्तान था। सुल्तान के बाद राज्य का प्रमुख न्यायाधीश काज़ी-उल मुमालिक था
दास और कारखाने
शाही महल व्यवस्था के लिए दास जरूरी थे। अलाउद्दीन खलजी के पास 50,000 फिरोज़ तुगलक के पास लगभग 1,80,000 दास थे। उसके शासनकाल में दासों के लिए एक अलग विभाग (दीवान-ए बंदगान) स्थापित किया गया था। ये दास मुख्यतया सुल्तान के निजी सेवक और अंगरक्षकों के रूप में कार्य करते थे। बरनी ने भी दिल्ली के पास गुलामों के एक बड़े बाजार का वर्णन किया है। शाही परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कारखाने स्थापित किए गए थे सेना के लिए वस्तुओं का उत्पादन भी कारखानों में होता था। अमीर भी निजी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए निजी कारखाने स्थापित करते थे।
मुगलों के अधीन केंद्रीय प्रशासन
मुगलकालीन शासन व्यवस्था के मूल ढांचे को खड़ा करने का श्रेय अकबर को जाता है। अकबर के शासनकाल के अंत तक कई सारे विभाग की स्थापना की गयी थी
सम्राट
प्राचीन भारतीय परंपराओं में हमेशा शक्तिशाली राजा की बात बताई गई है। मुगल सम्राट का प्रधान बहुत ज्यादा शक्तिशाली होता था। बिना उसकी सहमति एवं जानकारी के कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय नहीं लिया जाता था। मुगलों ने झरोखा दर्शन को प्रचलित किया। प्रजा को झरोखा दर्शन देने का अधिकार सम्राट के पास ही होता था। सम्राट एक निश्चित समय पर आम जनता को दर्शन देता था।
वकील और वजीर
अगर हम बात करें बाबर और हुमायूं के समय में तो वजीर का पद बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता था। इसे सैनिक तथा गैर सैनिक दोनों मामलों में असीम अधिकार प्राप्त है अकबर के शासन काल के आरंभिक वर्षों में बैरम खान ने वकील के रूप में अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल किया था। इसलिए अकबर ने निर्णय लिया कि इस के अधिकारों को सीमित किया जाए।
दीवान- ए- कुल
बैरम खान के पतन के बाद वकील का पद केवल राजनीतिक परामर्शदाता तक सीमित कर दिया गया और उसकी वित्तीय शक्तियां दीवान को प्रदान कर दी गई। सभी सरकारी रजिस्टर पर उसके मोहर हस्ताक्षर अनिवार्य कर दिए गए। यह सम्राट के आज्ञा अनुसार सेना के लिए वेतन राशि प्रदान करता था।
मीर बख्शी
मीर बख्शी सेना विभाग का सर्वोच्च अधिकारी माना जाता था। इस पद का विकास अकबर के काल में शुरू हुआ था
इसके मुख्य कार्य किस प्रकार थे
- सैनिक की भर्ती करना
- सैनिका हुलिया ठीक रखना
- सेना में अनुशासन रखना
- सैनिकों के लिए हथियार उपलब्ध कराना
- सैनिकों के लिए घोड़ो और हाथी का प्रबंध करना
- इसके अलावा शाही महल की सुरक्षा का भी जिम्मा सौंपा गया था
- मीर बख्शी के द्वार ' सरखत ' नामक पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद ही सैनिकों को उनकी मासिक वेतन प्राप्त होती थी
मुगलों के अधीन प्रांतीय प्रशासन
अकबर ने 1580 में अपने साम्राज्य को 12 प्रांतों में बांट दिया था और उसके बाद 15 प्रांत कर दिए थे।
सूबेदार
सूबेदार का सबसे महत्वपूर्ण कार्य जनता और सेना के लिए कल्याण की देखरेख करना था। सूबेदार जनकल्याण का कार्य करता था जैसे कृषि, व्यापार, कुओं, जलाशय बाग आदि का निर्माण करवाता था
दीवान
सूबेदार के बाद दीवान सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी होता था। इसकी नियुक्ति भी सम्राट खुद ही करता था। इसका मुख्य कार्य था राजस्व वसूलने वाले अधिकारियों तथा तहसीलदारों के बारे में ठीक-ठीक जानकारी रखना। यह वसूली और बकाया का हिसाब- किताब रखता था।
दरोगा- ए- डाक
मुगल काल में दूरदराज के इलाकों में संदेश भेजने के लिए राजकीय डाक सेवा की स्थापना की गई थी पत्रों को पहुंचाने के लिए तेज गति के विशेष घुड़सवारों की व्यवस्था की गई थी जहां एक धावक एक चौकी से दूसरी चौकी तक डाक ले जाता था
नगर, किला और बंदरगाह प्रशासन
मुगल शासन काल में नगरो, किलो और बंदरगाहों की देखभाल करने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था बनाई गई थी।
कोतवाल
राजधानियां और बड़े-बड़े शहरों में या अधिकारी शांति और व्यवस्था का प्रबंध करवाते थे नगर में शांति व्यवस्था बनाए रखना माप- तोल के बाटो का निरीक्षण करना अपराधों को रोकना यह सब इसके मुख्य कार्य थे
किलादार
मुगल साम्राज्य के पास अलग-अलग क्षेत्र में बड़ी संख्या में किले थे। हर जिले में छोटा नगर होता था उसमें सेना रहती थी किले के प्रधान अधिकारी को किलादार कहते थे
बंदरगाह प्रशासन
बंदरगाह का महत्व भारत में प्राचीन काल से ही रहा है क्योंकि बंदरगाह व्यापार और वाणिज्य गतिविधियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था।बंदरगाह का अधिकारी मुतसद्दी कहलाता था, जिसकी नियुक्ति सीधे सम्राट करता था। मुतसद्दी के अतंर्गत बंदरगाह पर सीमा शुल्क, व्यापारियों से कर लेना आदि शामिल होता था इस पद की और कभी-कभी नीलामी भी होती थी तथा जो ज्यादा बोली लगाता, उसे यह पद दिया जाता था