BHIC- 133 ( प्रारंभिक मुगल और अफगान ) Unit- 5 भारत का इतिहास C. 1206- 1707

BHIC- 133 ( प्रारंभिक मुगल और अफगान ) Unit- 5 भारत का इतिहास C. 1206- 1707 / bhic- 133- prarambhik mugal aur aphagan- unit- 5 bharat ka itihas
Subject- IGNOU- BAG- 2nd year 


bhic- 133- prarambhik mugal aur aphagan- unit- 5 bharat ka itihas

परिचय

16वीं शताब्दी के पूर्व भारतीय इतिहास में विदेशी आक्रमण के प्रयासों ने उत्तर भारत की राजनीति व्यवस्था एवं आर्थिक व्यवस्था को बहुत ज्यादा प्रभावित किया इस काल में कई राजा महाराजाओं का उदय हुआ। जिन्होंने कई प्रकार के राजनीतिक एवं आर्थिक सुधारों पर जोर दिया। इस ‌Unit में हम मुगल पृष्ठभूमि की चर्चा करेंगे जिसमें लोदी वंश से लेकर सूरवंश तक मुगलों की स्थापना से लेकर उनकी समस्याओं तक की चर्चा करेंगे।

लोदी साम्राज्य

15 वीं सदी के अंत तक बहलोल लोदी ने दिल्ली में लोदी राजवंश की स्थापना कर दी इस वंश का सबसे महत्वपूर्ण सुल्तान सिकंदर लोदी हुआ 

सिकंदर लोदी

सिकंदर लोदी ने गुजरात के राज्यो को भविष्य में होने वाले संघर्ष के लिए सामर्थ और शक्तिशाली बना दिया। उसने अफगान सरदारों को दबाने की कोशिश की जो सुल्तान को अपने बराबर समझते थे सिकंदर लोदी ने धौलपुर और ग्वालियर को जीतकर अपनी राज्य का प्रसार किया सिकंदर लोदी ने अभियानों के दौरान आगरा शहर की नींव रखी। आगरा लोदियों की दूसरी राजधानी बनी । इसी तरह से लोदी साम्राज्य उत्तर भारत, उत्तर पश्चिम में पंजाब से लेकर पूर्व में उत्तर बिहार में और चंपारण से लेकर दिल्ली के दक्षिण तक फैल गया।


इब्राहिम लोदी

इब्राहिम लोदी ( 1517- 1526 ) को सिकंदर लोदी की मृत्यु के बाद दिल्ली और आगरा संपत्ति के रूप में मिली जबकि उसके छोटे भाई जलाल खां को जौनपुर तथा दक्षिण पूर्वी भाग पर शासन करने को मिला। इब्राहिम खां का दिल्ली में राज्य अभिषेक हुआ इस निर्णय से जलाल खां ने विद्रोह कर दिया और ग्वालियर के शासक मानसिंह ने भागे हुए जलाल खां को शरण दी।

इब्राहिम लोदी ने ग्वालियर विजय के लिए 30000 अश्वारोहियों और 300 हाथियों की विशाल सेना भेजी इस दौरान मानसिंह का देहांत हो गया और उनके पुत्र विक्रमजीत ने दबाव में आकर दिल्ली का अधिकार स्वीकार कर लिया यह इब्राहिम लोदी के लिए एक महान विजय थी। इसी over confidence में लोदी ने मेवाड़ के राणा संग्राम सिंह को युद्ध की चुनौती भेजी, जिसमें इब्राहिम की पराजय हुई। 

इब्राहिम लोदी इस अवस्था में  चिड़चिड़ा हो गया। इधर बाबर ने ( 1524- 25 ) में पंजाब के कुलीनो की शक्ति का दमन कर दिया और पंजाब पर पूरा नियंत्रण कर लिया पानीपत के पहले युद्ध में 21 अप्रैल 1526 को इब्राहिम लोदी की बाबर ने हत्या कर दी और भारत में मुगल वंश की नींव रखी।


बाबर के आक्रमण की पूर्व संध्या पर राजनीतिक स्थिति

राजनीतिक अस्थिरता के इस काल में मध्य भारत में तीन महत्वपूर्ण शक्तिशाली राज्य थे

1. मालवा

2. गुजरात

3. मेवाड़

इन तीनों में से मेवाड़ सबसे ज्यादा शक्तिशाली था

मालवा का क्षेत्र लोदी शासकों तथा मेवाड़ के शासकों के लिए उत्पादन की दृष्टि से बढ़िया था। इसलिए मालवा के शासकों पर लोदी, मेवाड़ तथा गुजरात का आक्रमण होता रहता था। 15वीं शताब्दी में राणा सांगा ने मालवा एवं गुजरात के ज्यादातर क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था दक्षिण में विजयनगर और बहमनी जैसे शक्तिशाली राज्य थे जो कि हमेशा संघर्ष करते रहते थे।

मध्य एशिया तथा बाबर

15वीं शताब्दी तक तैमूर वंश के शासकों की स्थिति कमजोर हो चुकी थी। ईरान में इस्माइल के नेतृत्व में सफवी शक्ति का उदय हुआ पश्चिम में तुर्को का साम्राज्य था बाबर ने काबुल में राजनीतिक अस्थिरता का फायदा उठाया। और 1504 में काबुल पर अधिकार कर लिया। भारत में सिकंदर लोदी की मृत्यु के पश्चात राजनीतिक असंतोष था। 1519 में भीरा पर अधिकार के बाद बाबर का भारत में साम्राज्य विस्तार का विचार दृढ़ हो गया।

भारत में मुगल शासन की स्थापना

पानीपत का युद्ध भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन इससे पहले भी बाबर ने भारत में चार बार आक्रमण किया था पानीपत का युद्ध इब्राहिम लोदी और बाबर की सेनाओं के बीच हुआ था। इस युद्ध में बाबर की युद्ध कला और कुशल रणनीति के बारे में पता चलता है इब्राहिम लोदी की विशाल सेना के मुकाबले बाबर की मात्र मुट्ठी भर सेना ने विजय हासिल कर ली थी। पानीपत के युद्ध में बाबर द्वारा की गई रूमी पद्धति थी। जिसमें तोप का प्रयोग एवं युद्ध की एक विशेष नीति का प्रयोग किया जाता है। जिससे कि दुश्मनों के ऊपर चारों तरफ से हमला किया जाता है जिससे कि दुश्मन बौखला जाते हैं।

बाबर तथा अफगान सरदार

पानीपत और खानवा के युद्ध ने बाबर को भारत में स्थापित कर दिया था। लेकिन इसके बावजूद भी दिल्ली के आसपास के क्षेत्र अभी भी अफगान सरदारों के वश में था। बिहार एवं जौनपुर के क्षेत्रों के अफगान शासक काफी शक्तिशाली थे जौनपुर अवध के अफगानो‌ ने 1527 में बाबर के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था।बाबर ने अपनी साम्राज्य स्थापना और सुदृढ़ीकरण में राजपूतों और अफ़गानो की शक्तियों को कुचला तथा दिल्ली में अपनी सत्ता को सुरक्षित किया। बाबर की मृत्यु 29 दिसंबर 1530 में हो गई अब उसके उत्तराधिकारीयो के समक्ष यह चुनौती थी कि वह दमित शक्तियों को उभरने ना दें।

हुमायूं एवं उसके भाई

  • हुमायूं ने बाबर की मृत्यु के बाद साम्राज्य को अपने चारों भाइयों में बांट लिया।
  • मेवात- हिंन्दाल को 
  • संम्भल- असकरी को 
  • पंजाब, काबुल तथा कंधार कामरान को 
  • स्वयं दिल्ली का सुल्तान बन गया
  • लेकिन यह उदारता की नीति हुमायूं के लिए विनाशकारी साबित हुई। 
  • उसके भाई कामरान मिर्जा ने सबसे ज्यादा खतरा उत्पन्न किया। 
  • कामरान आदि भाइयों ने युद्ध के वक्त विश्वासघात कर दिया 
  • हुमायूं की असफलता में उसके भाइयों का भी हाथ था


भारत में मुगल शासक की पुनः स्थापना

शेरशाह से कन्नौज में हारने के बाद भी हिमायू संघर्ष करता रहा। भाइयों ने साथ नहीं दिया हालांकि हिंदाल ने समर्थन किया था। राजपूताने में समर्थन मिलने के बाद भी हुमायूं को सफलता नहीं मिली। हुमायूं को ईरान की ओर भाग जाना पड़ा ऐसी विषम परिस्थितियों में निरंतर युद्ध करते हुए काबुल और कंधार पर विजय पाई तथा कामरान की शक्तियों का दमन किया। कामरान की शक्तियों के दमन ने हुमायूं को काबुल का स्वामी बना दिया तथा 1555 में लाहौर पर अधिकार कर लिया। मुगलों की स्थिति अब पक्ष में आ चुकी थी इसी बीच 1566 में हुमायूं की मृत्यु हो गई। उसके बाद साम्राज्य का सुल्तान नाबालिग पुत्र अकबर था। जिसने भारत में मुगलों की स्थिति को शीर्ष पर पहुंचा दिया

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