BHIC- 133 ( मुगल साम्राज्य- अखबार से औरंगजेब ) Unit- 6 भारत का इतिहास C. 1206- 1707 / bhic- 133- mugal samrajy- akhabar se aurangajeb- unit- 6 bharat ka itihas
Subject- IGNOU- BAG- 2nd year
परिचय
हुमायूं ने मुगल सत्ता की स्थापना की तथा उसे मजबूत बनाया। लेकिन कम समय में ही उनकी आकस्मिक मृत्यु हो गई उसके उत्तराधिकारी अकबर की अवस्था उस वक्त मात्र 13 वर्ष की थी जिसके सामने विद्रोहियों से भरा हुआ साम्राज्य था। अकबर एक प्रतिभाशाली तथा वीर शासक था इस Unit में हम अकबर के राज्यारोहण, मुगल साम्राज्य का सुदृढ़ीकरण, विस्तार आदि के बारे में चर्चा करेंगे।
सत्ता की राजनीति और बैरम खां का संरक्षण
भारत में राजनीतिक अस्थिरता की अवस्था में ही हुमायूं की आकस्मिक मृत्यु हो गई। उस समय हुमायूं के उत्तराधिकारी अकबर की आयु मात्र 13 वर्ष थी। बैरम खां एक कुशल एवं वीर योद्धा था जो अकबर का संरक्षक बना। संरक्षक के रूप में बैरम खान ने शासन किया। लेकिन 1560 में बैरम खां से अकबर ने साम्राज्य की बागडोर संभाली।
अकबर के अधीन क्षेत्रीय प्रसार
वास्तव में मुगल साम्राज्य का प्रसार अकबर के काल में ही हुआ सत्ता पर बैठने के बाद अकबर ने अपनी सुनियोजित विस्तार की नीति को शुरू किया देश के अलग-अलग भागों में सरदारों एवं राजाओं का शासन था राजपूतों की शक्ति राजस्थान में सबसे ज्यादा थी अफगानो का नियंत्रण बंगाल, बिहार तथा गुजरात पर था। उत्तर-पश्चिम में मुगलों का ही शासन था लेकिन वह अकबर के विरोधी थे। अकबर के सामने बहुत सारी बड़ी-बड़ी चुनौतियां थी लेकिन उसने डटकर सामना किया और मुगल साम्राज्य का विस्तार किया।
उत्तर तथा मध्य भारत
उत्तर तथा मध्य भारत में यह युद्ध अभियान शुरू किया गया, जिसमें ग्वालियर के रामशाह और जौनपुर के अफगान ने आत्मसमर्पण कर दिया अभियानों के दौरान अकबर को अब्दुल्ला खां जैसे विद्रोही नेताओं का भी सामना करना पड़ा जिसका उसने दमन किया। अकबर ने अपनी कूटनीतिक एवं संगठनात्मक योग्यता तथा उसके कुछ विश्वासपात्र दोस्तों की मदद से उसने कई विषम परिस्थितियों का सामना किया।
पश्चिम भारत
पश्चिम भारत में मुख्य रूप से राजपूताना और गुजरात आते हैं। अकबर ने इन पर विजय अभियान आरंभ किया और सफलता भी प्राप्त कर ली।
राजपूताना की विजय
राजपूत शक्ति को अकबर ने महत्वपूर्ण माना तथा राजपूतों को सहयोगी बनाने और उनको वश में करने की कुशल नीति का प्रयोग किया। चित्तौड़ के महाराणा प्रताप को छोड़कर सभी राजपूत शासकों ने अकबर के साथ मित्रता निभाई राजपूतों की शक्ति के मुगलों में शामिल होने से मुगल साम्राज्य का विस्तार तेजी से हुआ।
गुजरात की विजय
गुजरात का अत्यधिक महत्व था। व्यापार और कृषि के साथ-साथ सैनिक दृष्टि से भी गुजरात महत्वपूर्ण था। अकबर ने 1572 में गुजरात अभियान शुरू किया। और अधिकार प्राप्त कर लिया। केवल सूरत में प्रतिरोध का सामना करना पड़ा बाकी सभी रियासतों ने अधीनता स्वीकार कर ली।
1581 के विद्रोह
अकबर के काल का सबसे बड़ा विद्रोह 1581 ई. का था। वी.ए. स्मिथ नामक इतिहासकार ने इसके बारे में बताएं। कुलीनों में असंतोष के कारण एक साथ बंगाल, बिहार, गुजरात तथा उत्तर-पश्चिम में विद्रोह भड़क उठा जिसका अकबर ने कुशलता से दमन किया। अन्यथा यह विद्रोह अकबर के साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध होता।
अकबर के उत्तराधिकारीयो के अधीन क्षेत्रीय विस्तार
अकबर ने मुगल साम्राज्य के विस्तार को पूर्ण रूप दिया था। उसके उत्तराधिकारीयो ने स्थापित साम्राज्य को बनाए रखने में मजबूती प्रदान की। औरंगजेब मुगल साम्राज्य का अंतिम शक्तिशाली शासक था क्योंकि उसके काल के बाद मुगल साम्राज्य बिखरना आरंभ हो चुका था।
मुगल राजपूत संबंध
जिस समय अकबर मुगल सिंहासन पर बैठा उस समय राजपूतों में अनेक छोटे-बड़े राज्य थे। अकबर ने राजपूतों के प्रति सद्भावना, मित्रता की नीति अपनाई अकबर एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शी सम्राट था अकबर यह बात जानता था कि राजपूत महान, वीर योद्धा है इसलिए उसने राजपूतों के प्रति परंपरावादी नीति से हटकर एक अलग नीति अपनाई। जिस वजह से मुगल साम्राज्य का विस्तार भी हो और युद्ध भी कम से कम होने की संभावना होगी। अकबर ने अपनी हिंदू पत्नियों को पूरी धार्मिक स्वतंत्रता दी। उसने अपनी राजपूत पत्नियों के साथ सम्मानीय व्यवहार भी किया। अकबर ने राजपूतों के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाए। इसी प्रकार से अकबर और राजपूतों के संबंध अच्छे थे।
मुगल और दक्खनी राज्य
प्रथम मुगल शासक बाबर था लेकिन वह दक्कन से कोई संपर्क स्थापित नहीं कर पाया क्योंकि वह उत्तर में व्यस्त था हुमायूं भी दक्कन की ओर ध्यान नहीं दे सका। वास्तविक रुप से अकबर ने दक्खनी राज्यो पर मुगल सत्ता की स्थापना की।
शाहजहां और दक्खनी राज्य