BHIC- 133 ( इक्ता और जागीर ) Unit- 9 भारत का इतिहास C. 1206- 1707

Today Topic- BHIC- 133 ( इक्ता और जागीर ) Unit- 9 भारत का इतिहास C. 1206- 1707 / bhic- 133- ikta aur jaager- unit- 9 bharat ka itihas
Subject- IGNOU- BAG- 2nd year 


bhic- 133- ikta aur jaager- unit- 9 bharat ka itihas

परिचय

सल्तनत की सीमाओं के विस्तार के साथ-साथ अलग-अलग क्षेत्रों पर प्रशासनिक नियंत्रण के लिए अलग-अलग प्रकार के तरीके को अपनाया जा रहा था। इक्ता प्रशासनिक व्यवस्था ने सल्तनत की काफी हद तक केंद्रीकरण में सहायता कर दी।

इक्ता क्या है 

इक्ता का अर्थ है धन के स्थान पर वेतन के रूप में भूमि प्रदान करना। 13वी शताब्दी के आरंभ में अपने राज्य के विस्तार के लिए इस तरीके को अपनाया गया। जिसे इक्ता  भू -अनुदान व्यवस्था कहा जाता था जिसको अधिकार प्राप्त होता था उसे मुक्ति कहते थे। (इक्ता और शासक वर्ग में संसाधनों का वितरण ) भूमि से लिया गया कर सल्तनत की आय का एक प्रमुख स्रोत होता था। मुक्ति ( इक्ता धारक ) का मुख्य कार्य था अपने क्षेत्र से प्राप्त भू-राजस्व को जमा करना और उस क्षेत्र में कानून व्यवस्था को बनाए रखना। इक्ता व्यवस्था द्वारा सुल्तान ने अमीरों पर अपना नियंत्रण भी स्थापित कर लिया। यह नई वित्तीय व्यवस्था सुल्तान और अमीरों के बीच संघर्ष का कारण बन कर उभरी।

जागीर व्यवस्था

मुगल सम्राट ने भी नगद वेतन के स्थान पर भू- राजस्व प्रदान किया इस व्यवस्था को जागीर व्यवस्था कहते हैं इस प्रदेश क्षेत्र को जागीर और इसको प्राप्त करने वाले को जागीरदार। जागीर व्यवस्था के अंतर्गत भूमि नहीं दी जाती थी बल्कि उसके बजाय भूमि से प्राप्त राजस्व दिया जाता था।

आरंभिक चरण

मुगल साम्राज्य के शुरुआती काल में बाबर ने अफगान सरदारों को जीते हुए क्षेत्र बांट दिए। जिसे 'वजह' के नाम से जाना जाता है और जिनको यह क्षेत्र मिलता है उन्हें वजहदार कहते हैं हुमायूं के काल में भी यह व्यवस्था लागू की गई थी।

जागीर अवस्था का संगठन

अकबर के साम्राज्य में भूमि को मुख्य दो भागों में बांट दिया गया था

1. खालसा - खालसा राज्य की भूमि होती थी जिसका राजस्व सीधे राजकोष में जाता था।

2. जागीर - नगद वेतन के स्थान पर भू- राजस्व प्रदान किया

इसके अलावा जो वास्तविक राजस्व वसूल हो पाती थी उसे हासिल कहा जाता था जागीरदारों की शक्ति ज्यादा ना बढ़ जाए इसलिए उनका स्थानांतरण होता रहता था

जागीरो के विभिन्न प्रकार

1.  वेतन के रूप में प्रदान की गई जागीरो को ( जागीर-ए- तनखा ) कहा जाता था

2. विशिष्ट उद्देश्य और कार्य से प्रदान की गई जागीर को ( मशरूत ) जागीर कहते थे।

3. कुछ जागीरे इनाम के रूप में भी दे दी जाती थी। इसे ( इनाम जागीर ) कहा जाता था

4. कई जागीरे ऐसी भी थी जो जहांगीर के शासनकाल में मुस्लिम कुलीनों को  दे दी गई थी इसे ( अल- तमगा ) कहते थे। ऊपर आपको जो भी जागीर बताई गई है वह सभी स्थानांतरित भी होती थी

जागीरो का प्रबंधन 

जागीरदारी प्रथा मुख्य रूप से राजस्व की वसूली के लिए बनाई गई थी। जो राजकीय नियमों के अनुसार राजस्व वसूलते थे। जागीरदारों पर नजर रखने के लिए अमीन की नियुक्ति भी की जाती थी फौजदार इन जागीरदारों की राजस्व वसूली में सहायता कर देता था।


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