BHIC- 133 ( सैन्य संगठन और मनसब व्यवस्था ) Unit- 8 भारत का इतिहास C. 1206- 1707

Today Topic- BHIC- 133 ( सैन्य संगठन और मनसब व्यवस्था ) Unit- 8 भारत का इतिहास C. 1206- 1707 / bhic- 133- Sainya sangathan aur mansab vyavastha- unit- 8 bharat ka itihas
Subject- IGNOU- BAG- 2nd year

 

bhic- 133- Sainya sangathan aur mansab vyavastha- unit- 8 bharat ka itihas

परिचय

बरनी ने फतवा- ए जहांदारी में लिखा है कि सुल्तान की शक्ति उसकी सेना में बसी होती थी। क्योंकि भारत में अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए और मंगोल आक्रमण से बचाव के लिए सल्तनत के पास एक कुशल सेना का होना बहुत जरूरी होता था दिल्ली का कोई सुल्तान सुरक्षा और सेना के मामले में ढीलापन नहीं दिखाता था अलाउद्दीन ने भी सैन्य शक्ति को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाएं मुगल सेना नई तकनीकी वाले हथियारों का प्रयोग किया करती थी जैसे की बंदूक और तोप


दिल्ली सुल्तानों का सैन्य संगठन

सुल्तानों की सैनिक शक्ति उनके सैनिक बल पर निर्भर करती थी। अमीर, मलिक, खान यह सभी उपाधियां सैनिक श्रेणियों के लिए प्रयोग की जाती थी मोहम्मद बिन तुगलक के शासन काल में सेनाअध्यक्षों से राजस्व वसूलने का अधिकार छीन लिया गया सिकदार और फौजदार नाम के दो अधिकारियों को यह अधिकार दे दिया गया।

मुगल सेना की घटक शाखाएं तथा अधिकारी- गण

मुगल सेना में पैदल सेना, हाथी सेना, तोपखाना और नौ- सेना प्रमुख शक्तियां थी। मुगल सेना में ईरानी, अफगान और राजपूत आदि विभिन्न जाति के लोग सम्मिलित थे। मुगल सम्राट सेना का वास्तविक सेनापति था। सैन्य विभाग का प्रमुख बख्शी- ए मुमालिक या मीर बख्शी था, जो विभिन्न सैन्य गतिविधियों पर नजर रखते थे


मनसब व्यवस्था

मनसब शब्द का अर्थ 'पद' अथवा 'प्रतिष्ठा का पद' या 'ओहदा' मनसबदारी प्रथा की शुरुआत अकबर के काल में हुआ।  अकबर अपने सैनिक और नागरिक अधिकारियों को उनकी योग्यता के अनुसार मनसब प्रदान किया करता था।

दोहरा पद: जात और सवार

सवार - ( Actually ) इसका मतलब होता था कि आप वास्तविक में कितने घुड़सवार रखते थे। जैसे कि आपके पास 1000  घुड़सवार है।

जात ( order ) का मतलब होता था- जितना आपको आर्डर दिया गया था रखने के लिए जैसे कि आप को कहा गया था 2000 हजार घुड़सवार रखने हैं। वेतन भी जात के हिसाब से ही दिया जाता था।

मनसबदारों की तीन श्रेणियाँ

मनसबदारों की श्रेणियाँ -  मनसबदारों की निम्नलिखित तीन श्रेणियां थीं-

(i) प्रथम श्रेणी - के मनसबदार  इस श्रेणी में वे मनसबदार आते थे, जिनके घुड़सवारों की संख्या जात के बराबर होती थी।

(ii) द्वितीय श्रेणी -  के मनसबदार  इस श्रेणी में वे मनसबदार आते थे, जिनके पास जात की संख्या के आधे या आधे से अधिक घुड़सवार होते थे।

(iii) तृतीय श्रेणी -  तृतीय श्रेणी में वे मनसबदार आते थे, जिनके घुड़सवारों की संख्या उनकी ज़ात संख्या के आधे से कम होती थी।

मनसबदारो की नियुक्ति 

मनसबदारो की नियुक्ति करने के लिए लिखित परीक्षा की व्यवस्था नहीं की गई थी सम्राट को इसका पूरा अधिकार था कि वह किसी को भी मनसबदार बना सकते थे। मनसबदारो की नियुक्ति में पहले के मनसबदारो के परिवारों वालों को प्राथमिकता दी जाती थी यह लोग खानजादा कहलाते थे ‌।

सेना का रख-रखाव और भुगतान

सेना के रखरखाव की जिम्मेदारी मनसबदारो की होती थी लेकिन इसका सख्ती से पालन किया जाता था अच्छी नस्ल के घोड़े रखने के लिए स्वस्थ सैनिकों की नियुक्ति की जाती थी। घोड़े के ऊपर मुहर लगाई जाती थी। तथा सैनिकों का चिन्ह भी दर्ज किया जाता था।

मासिक वेतन

मनसबदारों को हमेशा वेतन के रूप में जागीरे भी दी जाती थी। उस जागीरो से 1 वर्ष में प्राप्त आय भी उत्पन्न होती थी साथ ही नगद भुगतान भी किया जाता था मासिक तौर पर।

अधिग्रहण व्यवस्था

कुलीन वर्ग तथा अमीरों की मृत्यु के बाद अगर उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं होता था तो सम्राट उनकी पूरी संपत्ति को जप्त कर लेता था। 1666 में औरंगजेब ने एक फरमान जारी किया था जिसके अंतर्गत यह बताया गया था  उत्तराधिकारी ना होने पर सारी संपत्ति मृत्यु के पश्चात राजकोष में जमा हो जाएगी।


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