BHIC- 133 ( विजयनगर साम्राज्य और दक्कन राज्य ) Unit- 4 भारत का इतिहास C. 1206- 1707

Today Topic- BHIC- 133 ( विजयनगर साम्राज्य और दक्कन राज्य ) Unit- 4 भारत का इतिहास C. 1206- 1707 / bhic- 133- vijaynagar samraajy aur dakkan rajy- unit- 4 bharat ka itihas

Subject- IGNOU- BAG- 2nd year 

bhic- 133- vijaynagar samraajy aur dakkan rajy- unit- 4 bharat ka itihas


दक्षिण भारत का भौगोलिक विन्यास

नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित सभी क्षेत्र दक्षिण भारत कहलाते हैं। लेकिन यह दो बड़े इलाकों से मिलकर बना हुआ है 

1. दक्कन 

दक्कन उत्तर तथा उत्तर पूर्व में नर्मदा एवं महानदियों से घिरा हुआ है दक्षिण में नीलगिरी पहाड़ियां और नदी क्षेत्र है मध्य दक्कन की काली मिट्टी का क्षेत्र कपास की खेती के लिए बढ़िया है दक्षिण दक्कन का पठार भी खनिज स्रोतों जैसे कि तांबा, शीशा, जिंक, लोहा आदि से समृद्ध है। पहाड़ी एवं जंगली क्षेत्रों के कारण दक्कन राज्य में घुसना बहुत कठिन माना जाता है लेकिन दक्षिण गुजरात के बगलाना क्षेत्र से होकर यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है इसी कारण से गुजराती शासकों द्वारा बार-बार इस क्षेत्र पर हमले होते थे।

 2. दक्षिण भारत

कृष्ण- तुंगभद्रा के दक्षिण में स्थित क्षेत्र दक्षिण भारत कहलाता है पूर्व में स्थित तटीय क्षेत्र कोरोमंडल कहलाता है दक्षिण में स्थित पश्चिमी क्षेत्र मालावर कहलाता है कावेरी क्षेत्र के आसपास का क्षेत्र चोल शासकों के दौरान सबसे महत्वपूर्ण गतिविधियों का केंद्र बना रहा प्रवासियों के लिए सूखी खेती ( सिंचाई के लिए कृतिम साधन का इस्तेमाल करना ) के लिए भी यहां की जमीन बहुत अच्छी थी


विजयनगर साम्राज्य की स्थापना सुदृढ़ीकरण 

कृष्णा- गोदावरी डेल्टा, कावेरी घाटी और कोकण भूभाग जैसे क्षेत्र विजयनगर के मध्य संघर्ष के मुख्य केंद्र थे।

प्रारंभिक काल - 1336 -1509 

कृष्णा गोदावरी डेल्टा पर नियंत्रण को लेकर लगातार संघर्ष होते रहते थे।  जिसकी वजह से विजयनगर की सीमाएं हमेशा परिवर्तित होती रहती थी। ( 1336- 1422 ) मुख्य संघर्ष विजय नगर एवं बहमनी शासकों के बीच हुआ करता था जिसमें विजयनगर का पलड़ा भारी रहा ( 1442-1446 ) के दौरान अधिग्रहण को लेकर विजयनगर और बहमनी शासकों के बीच संघर्ष में विजयनगर की हार हुई जिसके बाद विजयनगर सेना में मुस्लिम तीरंदाजो और अच्छी नस्ल वाले घोड़ों को शामिल किया गया। प्रारंभ में विजयनगर को अपने पश्चिमी बंदरगाहों को बहमनी शासकों के हाथों गवाना पड़ा था। लेकिन दोबारा से बंदरगाहों को प्राप्त कर लिया गया।


कृष्ण देव राय- 1509-1529 

कृष्णदेव राय के समय ( 1509-1529 ) विजयनगर बहुत शक्तिशाली बनाना रहा कृष्णदेव राय ने उदयगिरि, नालगोंडा और राजामुंदरी को प्राप्त किया  कृष्ण देव राय ने पुर्तगालियों के साथ अच्छे संबंध बनाकर उनकी सहायता से बीजापुर के इस्माइल आदिल खान को हराया


विजयनगर साम्राज्य में धर्म राजनीति

विजयनगर साम्राज्य में धर्म का पालन करना एक महत्वपूर्ण लक्षण था। विजयनगर साम्राज्य में कई बार ऐसी स्थिति भी हुई है कि विजयनगर साम्राज्य को हिंदू प्रतियोगियों के विरुद्ध लड़ाई करनी पड़ती थी। जैसे उड़ीसा के गजपति के साथ युद्ध हुआ था। जिसमें विजय दिलवाने में विजयनगर के मुस्लिम सैनिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जैसा कि हमने आपको बताया था विजय नगर की सेना में मुस्लिम तीरंदाजो की भर्ती की गयी थी 


राजाओं, संप्रदायो और मंदिरों के मध्य संबंध

विजयनगर से दूर स्थित तमिल भूभाग पर शासकों ने तमिल धार्मिक संगठनो, जैसे मंदिर स्थापित किए थे विजयनगर के शासकों ने अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए धार्मिक संगठन के साथ अपने संबंध स्थापित किए

 संबंधों को निम्न के आधार पर समझा जा सकता है

1. राजत्व को बनाए रखने के लिए मंदिर आधारभूत थे

2. मुखियाओं, राजाओं के बीच मंदिर कड़ी का कार्य करते थे


विजयनगर साम्राज्य में स्थानीय प्रशासन

इतिहासकारों के अनुसार विजयनगर साम्राज्य में सेनानायको को नायक कहकर पुकारा जाता था। इन्हें वेतन के बदले सेना के रखरखाव के लिए विशेष भूमि प्रदान की जाती थी। 

इनके दो प्रमुख उत्तरदायित्व थे

1. इन्हें प्राप्त आय के एक अंश को केंद्रीय खजाने में जमा करना होता था

2. इन्हें भूमि की आय से राजा की सहायता के लिए सेना खड़ी करनी होती थी।


मंदिरों की आर्थिक भूमिका

विजयनगर के मंदिर सैकड़ों गांव से आर्थिक सहायता प्राप्त करके प्रमुख बने। गांव से धार्मिक कर्मचारियों को वेतन दिया जाता था। उन्होंने कई लोगों को रोजगार दिया उन्होंने कई लोगों को आर्थिक सुविधा भी उपलब्ध कराई, ऋण देने का कार्य भी करते थे। इसी तरीके से दक्षिण भारत के मंदिर आर्थिक गतिविधियों के मुख्य केंद्र भी माने जाते थे।


बहमनी शक्ति का उदय

मोहम्मद तुगलक के काल में दक्कन को अधिकांश भागों में बांट दिया गया था। उस समय अधिकांश भागों पर दिल्ली सल्तनत ने विजय प्राप्त कर रखी थी। संपूर्ण प्रदेश को 23 प्रांतों में विभाजित करके उलूग खान को प्रदेश का गवर्नर बनाया गया था।

संकट का सूत्रपात

जब मोहम्मद तुगलक को अमीरों द्वारा हासिल अधिकारों के बारे में पता चला। तो उसने उन्हें दबाने का प्रयास किया जिससे अमीरों ने विद्रोह कर दिया। पहला विद्रोह 1327 में बहाउद्दीन के नेतृत्व में इस विद्रोह में स्थानीय सरदारों व अमीरों का सहयोग प्राप्त था हालांकि इस विद्रोह को दबा दिया गया लेकिन इससे दिल्ली का नियंत्रण कमजोर हो गया। 1344 में दक्कन से मिलने वाली कुल राजस्व राशि में बहुत ज्यादा गिरावट आई विजयनगर तथा बहमनी राज्यो के बीच श्रेष्ठता के लिए संघर्ष जारी रहा ।


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