BHIC- 133 ( क्षेत्रीय राज्य ) Unit- 3 भारत का इतिहास C. 1206- 1707

BHIC- 133 ( क्षेत्रीय राज्य ) Unit- 3 भारत का इतिहास C. 1206- 1707 / bhic- 133- kshetriya rajya- Unit- 3 bharat ka itihas
Subject- IGNOU- BAG- 2nd year 


bhic- 133- kshetriya rajya- Unit- 3 bharat ka itihas


क्षेत्रीय शक्ति का आविर्भाव- विभिन्न दृष्टिकोण

समाजशास्त्रीय ने क्षेत्रीय शक्तियों के आविर्भाव के विषय में मतभेद को व्यक्त किया है। प्रमुख शक्तियों के प्रभाव क्षेत्र में कमी का कारण मंगोलों अन्य प्रमुख शक्तियों के साथ लगातार बढ़ती हुई प्रतियोगिता थी जिसकी वजह से सल्तनत काल में दो या दो से अधिक बड़ी शक्तियों को बार-बार युद्ध करने की प्रवृत्ति विकसित हो गई।

क्षेत्रीय राज्य साम्राज्य का दर्जा क्यों नहीं प्राप्त कर सके

क्षेत्रीय राज्य को साम्राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं हो पाया इसका कारण श्वाट्जबर्ग ने उनकी भौगोलिक और पारिस्थिति स्थिति को माना है क्योंकि कश्मीर, गुजरात, ओडिशा, असम और बंगाल आदि साम्राज्य के (केन्द्र) में स्थित नहीं थे। जहाँ एक और पहाड़ी भू- भागों ने कश्मीर के क्षेत्रीय विस्तार को रोका, और इसके अलावा क्षेत्रीय राज्य आपस में लड़ते रहते थे, जिसकी वजह से भी विस्तार में बाधक होती थी।


मध्य तथा पूर्वी भारत ( मालवा ) 

मालवा के गवर्नर दिलावर खां गौरी ने सल्तनत के पतन के पश्चात सन् 1401- 02 में स्वयं को मालवा का राजा घोषित कर दिया। उसने सौयर, दमोह तथा चन्देरी पर अधिकार करके अपने राज्य की सीमाओं का प्रसार किया। उसने अपनी पुत्री का विवाह खानदेश के मलिक राजा फारूकी के बेटे अली शेर खलजी और फारूकी की बेटी का विवाह अपने पुत्र अल्प खां के साथ करके अपने राज्य की दक्षिण- पूर्वी सीमाओं की रक्षा सुनिश्चित की। गुजरात के शासक मुज़फ्फर शाह के साथ संबंध स्थापित करके मालवा को आक्रमणों से बचाया। 1406 में उसकी मृत्यु के बाद ही गुजरात के शासक मुज़फ्फर ने मालवा पर अधिकार किया


जौनपुर

अफीफ के अनुसार, गोमती नदी के किनारे जौनपुर नगर की स्थापना फिरोज़ शाह तुगलक द्वारा 1359-1360 में की गई थी। शीघ्र ही यह शहर सत्ता का एक मजबूत केन्द्र हो गया। फिरोज़ शाह तुगलक के पुत्रों के बीच उत्तराधिकारी के लिए हुए संघर्ष हो रहा था।  इसका लाभ उठाते हुए एक अमीर मलिक सरवर ने सुल्तान मुहम्मद शाह के अधीन पहले वजीर का पद प्राप्त किया, फिर सुल्तान की उपाधि प्राप्त करके पूर्वी जिलों का नियंत्रण प्राप्त कर लिया।

तैमूर के आक्रमण के कारण दिल्ली कमजोर पड़ गई थी और सरवर ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए स्वयं को जौनपुर का  शासक घोषित कर दिया। उसकी उच्च अभिलाषाओं के कारण जौनपुर का दिल्ली, बंगाल, ओडिशा तथा मालवा के साथ कड़ा सैन्य संघर्ष हुआ। इन संघर्षों में उसे सफलता प्राप्त न हुई, लेकिन उसने जाजनगर तथा ग्वालियर को अपने अधीन कर लिया। लेकिन छोटे भाई एवं उत्तराधिकारी इब्राहिम शाह (1401-1440) ने प्रभावशाली ढंग से अपने राज्य का प्रसार किया। 

सबसे महत्वपूर्ण विजय 1406 में मुहम्मद शाह तुगलक के अधीन कन्नौज पर हुई । बाद में उसका दिल्ली पर अधिकार करने का यह प्रयास असफल रहा। उसने दोबारा से 1437 में दिल्ली पर आक्रमण किया और आस-पास के कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया, जिससे दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद शाह तुगलक को  अंत में उससे संधि करनी पड़ी। सुल्तान ने अपनी पुत्री बीबी हाजी का विवाह इब्राहिम के पुत्र महमूद खां से किया जिसकी वजह से जौनपुर राज्य की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।


उत्तरी एवं दक्षिणी भारत ( कश्मीर ) 

हिमालय पर्वत की श्रृंखला में कश्मीर घाटी के अंतर्ग एक और झेलम नदी एवं इस की सहायक नदियां और मैदानी क्षेत्र आते हैं 13वी सदी का कश्मीर एक स्वतंत्र राज्य था लेकिन वहाँ का हिन्दू राजा जगदेव (1198-1212) और उसके उत्तराधिकारी राजादेव तथा रामदेव कमजोर शासक थे। रामदेव की मृत्यु के बाद सिंहदेव (1286-1301) का शासन भी अधिक दिनों तक नहीं रहा अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण तुर्कों के भारत आगमन के बाद लगभग दो सदियों तक कश्मीर उनके प्रभाव से मुक्त रहा।

1320 में सेनापति दुलाचा ने कश्मीर पर आक्रमण कर उसकी संपत्ति को लूटा। लेकिन भयंकर तूफान के कारण उसकी मृत्यु हो गई । इस आक्रमण ने कश्मीर में मुसलमान शासन की स्थापना की लद्दाख के राजकुमार रिंचन ने 1320 में राजा सहदेव को हराकर कश्मीर पर अधिकार कर लिया ।


उत्तर पश्चिम- राजपूताना

भौगोलिक रूप से इस क्षेत्र के अंतर्गत थार का रेगिस्तान, दक्षिण पश्चिम में बसे कच्छ का मैदान तथा अरावली पहाड़ियों में बसी मेवाड़, चित्तौड़ आदि आते हैं मीना, मेड़ तथा जाट आदि स्थानीय जातियाँ राजतंत्र स्थापित करने में असफल रही जबकि उत्तर- पश्चिम भारत से आये अन्य राजपूत इस कार्य में सफल हुए। प्रारंभ में राजपूत उपयुक्त संसाधनों के कारण नदियों के किनारे पर बसे लेकिन आबादी बढ़ने के साथ उत्तराधिकार या अन्य विषयों को लेकर झगड़े बढ़ने लगे

मारवाड़ के राठौड़

13वीं सदी के मध्य राठौड़ों ने कन्नौज से पाली की और विस्थापन किया और इस क्षेत्र पर अपने प्रभुत्व को स्थापित किया अपने शासन का विस्तार इदर, मल्लानि, मंदसौर, जैसलमेर, बाडमेर, अमरकोट एवं भीनमल तक किया। जोधा के पुत्र बीका ने 1488 में बीकानेर नगर की स्थापना की, जो सत्ता का एक केन्द्र बन गया। बीका ने अपने पूर्वजों की जोधपुर गद्दी को प्राप्त करने का असफल प्रयास किया। 1504 में उसकी मृत्यु के समय उसके नियंत्रण में एक विशाल भू-भाग था। बाद में राव सुजा के शासनकाल (1492-1515) से राठौड़ शक्ति का पतन होने लगा।


गुजरात

1299 में अलाउद्दीन के सेनापतियों ने चालुक्य के शासक राजा कर्ण बघेला को हराकर गुजरात में सल्तनत राज्य की नींव रखी। 14वी सदी में गुजरात सल्तनत राज के ही अधीन रहा। लेकिन फिरोजशाह के समय सल्तनत का नियंत्रण गुजरात पर कमजोर होता गया गुजरात के गवर्नर जफर खान ने 1407 में गुजरात में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की।


सिंध

भारत की पश्चिमी सीमा पर स्थित सिंध एक स्वतंत्र राज्य था। जिस पर मोहम्मद बिन कासिम ने 712 में आक्रमण करके मुसलमान शक्ति की स्थापना की थी इल्तुतमिश के वज़ीर निजाम-उल मुल्क जुनैदी ने 1228 में सिंध पर अधिकार किया। 1351 में सम्माहों ने सुमीरों को हराकर सिंध में 175 वर्षों तक शासन किया। लेकिन फिरोजशाह तुगलक के समक्ष आत्मसमर्पण करना पड़ा। 1388 में फिरोजशाह तुगलक की मृत्यु के तुरंत बाद के सम्माहों ने सल्तनत से विद्रोह करके तुगलक के नेतृत्व में स्वतंत्र घोषित कर दिया।


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