संघर्ष एवं सुदृढ़ीकरण : 1206-1290
1206 से 1290 तक का समय दिल्ली सल्तनत के इतिहास में अत्यंत चुनौतीपूर्ण रहा। 1206 में मुहम्मद गौरी की अकस्मात मृत्यु के पश्चात् उसके तीन महत्वपूर्ण सेनापतियों ताजुद्दीन यल्दूज़, नासिरुद्दीन कुबाचा एवं कुतबुद्दीन ऐबक के मध्य सर्वोच्चता के लिए संघर्ष शुरू हो गया। अपने चार वर्ष के अल्प शासनकाल में कुतबुद्दीन ऐबक ने लाहौर में अपनी राजधानी स्थापित की।
ऐबक के उत्तराधिकारी के रूप में उसके दामाद इल्तुतमिश ने गद्दी संभालीइसके पश्चात् चार शासकों ने इल्तुतमिश के उत्तराधिकारी के रूप में दिल्ली सल्तनत पर शासन कियाइसके अतिरिक्त छोटे-छोटे राजपूत सरदारों एवं स्थानीय सरदारों का दिल्ली सल्तनत के विरुद्ध विद्रोह और मंगोल आक्रमणकारियों की सक्रियता ने राजनीतिक अस्थिरता पैदा की।
मंगोल समस्या
हिंदूकुश पर्वत कंधार रेखा पर दिल्ली सल्तनत पर नियंत्रण पाने के लिए बहुत जरूरी था क्योंकि प्राकृतिक सीमाओं की सुरक्षा तथा सिल्क मार्ग तक पहुंचने के लिए बहुत जरूरी था लेकिन मंगोल के आक्रमणों की वजह से दिल्ली के सुल्तानों का नियंत्रण केवल सिंधु नदी के पश्चिम तक ही रह गया था। खिलजी के शासन काल में मंगोलों द्वारा दिल्ली पर प्रथम आक्रमण 1299 में किया गया। ( ख्वाजा के नेतृत्व में) 1303 में दूसरा आक्रमण किया गया जिससे कि दिल्ली का व्यापक स्तर पर सर्वनाश हुआ।
मंगोलो के लगातार होने वाले आक्रमणों के कारण अलाउद्दीन ने सैन्य शक्ति को बढ़ाया और सीमा की किलों को मजबूत किया जिसके कारण मंगोलों को पहले 1306 में और फिर 1308 में पराजय का सामना करना पड़ा। जिसकी वजह से मंगोल कमजोर पड़ गए थे। अब दिल्ली के सुल्तानों को अपनी सल्तनत की सीमाओं का प्रसार करने में सहायता मिली। इसी तरह से दिल्ली के सुल्तान मंगोल समस्या का समाधान करने में सफल रहे और मंगोलो से अपने राज्यों को बचाए रखने में सफलता प्राप्त की
भारत में तुर्की विजय के राजनीतिक परिणाम
तुर्की विजय के भारत में राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों में परिवर्तन हुए। राजा को असीमित अधिकार प्राप्त हो गयाराजा के अधिकारियों को राजस्व एकत्रित करने तथा सेना के रखरखाव के लिए भू- क्षेत्र प्रदान किया गया प्रदान किए गए।शहरी अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुई और तुर्की द्वारा लगाए गए चरखे से कृषि उत्पादन बढ़ने में काफी सहायता मिली।
खिलजी शासन का प्रसार
13वीं सदी के अंत में तुर्की शासन खिलजी वंश द्वारा तख्तापलट कर देने वाला एक महत्वपूर्ण घटना घटी सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने क्षेत्रीय प्रसार और धन इकट्ठा करने के लिए पड़ोसी क्षेत्रों पर हमला किया और लूटमार करने लगे। सुल्तान जलालुद्दीन की हत्या के पश्चात अलाउद्दीन सुल्तान बना और उसने साम्राज्य का प्रसार किया। उसके शासनकाल के दौरान 14वी सदी के मध्य तक सल्तनत की सीमाएं दक्षिणी प्रायद्वीप के अंतिम छोर तक फैल गई।
पश्चिम तथा मध्य भारत में
अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए सबसे पहले क्षेत्रीय प्रसार 1299 में गुजरात प्रदेश में सैनिक अभियान से शुरू किया। उसने अपने दो सर्वश्रेष्ठ सेनापतियों को लेकर उलुग खान एवं नुसरत खान की सहायता से गुजरात प्रदेश को सरलता से जीत लिया इसके पश्चात अलाउद्दीन ने 1305 में मालवा को अपने अधीन किया और फिर शीघ्र ही उज्जैन को अपने नियंत्रण में कर लिया।
उत्तर पश्चिम तथा उत्तर भारत
अलाउद्दीन द्वारा जलालुद्दीन की हत्या के पश्चात् उसका परिवार भाग कर ( मुल्तान चला ) गया विद्रोह की संभावना के कारण अलाउद्दीन ने उलुग खान तथा ज़फ़र खान को मुल्तान में उसके परिवार को नष्ट करने के लिए भेजा। जलालुद्दीन के परिवार को बंदी बना लिया गया और मुल्तान एक बार फिर दिल्ली के नियंत्रण में आ गया।
तुगलक शासन का प्रसार
राजनीतिक अस्थिरता के कारण सल्तनत का प्रभावशाली नियंत्रण केवल केंद्रीय भू- भाग तक ही सिमट कर रह गया था उसके बाद तो तुगलक वंश के गयासुद्दीन तुगलक ने 1320 में दिल्ली के सिंहासन को प्राप्त किया उस समय प्रशासनिक तंत्र कमजोर पड़ गया था और खजाना भी बिल्कुल खाली हो चुका था गयासुद्दीन तुगलक ने अपना मुख्य उद्देश्य आर्थिक और प्रशासनिक स्थिति को सुधारने की ओर केंद्रित किया
पूर्वी भारत
पूर्वी भारत में बंगाल प्रांत के गवर्नर स्वयं को स्वतंत्र करने का कोई भी अवसर नहीं जाने देते थे। फिरोज शाह की मृत्यु के बाद 1323- 24 में सिंहासन के लिए भाइयों के बीच युद्ध शुरू हो गया। सुल्तान की सेनाओं ने सरलता से बंगाल की सेना को पराजित कर दिया
उत्तर पश्चिम तथा उत्तर
मोहम्मद तुगलक ने इन क्षेत्रों को जीतकर वहां की प्रशासनिक व्यवस्था को दुरुस्त किया और दोबारा दिल्ली लौट आए लगभग 1332 में सुल्तान मोहम्मद तुगलक ने कराची क्षेत्र पर विजय पाने के उद्देश्य से खुसरो के नेतृत्व में विशाल सेना भेजी। खुसरो ने कराची क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। खुसरो ने सुल्तान के आदेश की अवहेलना करते हुए अपने उत्साह में तिब्बत की और आगे बढ़ गया लेकिन तुरंत ही वर्षा शुरू हो गई और सेना बीमार पड़ गई । जिससे मात्र 3 जवान ही इस विपत्तिपूर्ण कहानी का विवरण देने के लिए जीवित वापस आ सके। इससे कराचिल अभियान में संसाधनों का काफी नुकसान हुआ और इससे सुल्तान मोहम्मद तुगलक को काफी ठेस पहुंची।