B.A. FIRST YEAR ( POLITICAL SCIENCE ) CHAPTER- 10 IGNOU BPSC- 131 राजनीतिक सिद्धांत का परिचय CHAPTER- 10 / नागरिक समाज और राज्य


नागरिक समाज : प्रकृति

कुछ विद्वान राज्य और नागरिक समाज को अलग-अलग मानते हैं तो वहीं कुछ विद्वान राज्य और नागरिक समाज को एक दूसरे के पूरक मानते हैं हॉब्स, लॉक  के अनुसार नागरिक समाज पर ही राज्य आधारित होता है क्योंकि राज्य भी समाज का ही एक हिस्सा है नागरिक समाज के अंतर्गत  आर्थिक संबंध, पारिवारिक ढांचे, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षिक संस्थाएं आती है


फर्गयूसन ने अपनी रचना AN ESSAY ON THE HISTORY OF CIVIL SOCIETY 1767 में नागरिक समाज का विस्तृत विश्लेषण किया इन्होंने राज्य और नागरिक समाज को एक समान माना हिगल ने राज्य और नागरिक समाज को दो अलग चीजें माना इनके के अनुसार नागरिक समाज में निजी व्यक्तियों की संपूर्णता मूर्त होती है मार्क्स के अनुसार नागरिक समाज घोर भौतिकवाद की, संपत्तिगत संबंधों की, संघर्ष की, तथा अहंवाद स्थल है


राज्य की अवधारणा

राज्य यानी STATE शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है इसका अर्थ है होने की स्थिति सबसे पहले इस शब्द का प्रयोग मैकियावेली ने किया। राज्य एक राजनीतिक सत्ता है जिसके पास लोग, भू-क्षेत्र्,सरकार तथा संप्रभुता होती है डेविड ईस्टन ने राज्य को व्यवस्था के शब्द से संबोधित किया राज्य को अमूर्त माना जाता है संरचनात्मक परिवर्तन सरकार में होते हैं सरकार एक ऐसा निकाय या संस्था है जो नीतियां तथा कानून बनाती है तथा उन्हें लागू करती है राज्य में सरकार को एक राजनीतिक कार्यपालिका माना जाता है जबकि प्रशासन को एक स्थाई कार्यपालिका माना जाता है 

आधुनिक राज्य का स्वरूप भी न तथा अत्यधिक जटिल होता है राज्य अपने आप में संगठित एक सत्ता है जो सामाजिक संबंधों को स्वीकार करता है राज्य विशेषत: राजनीतिक प्रथाएं है जो निर्णय को परिभाषित व लागू करता है बल प्रयोग के साधन, जो समाज में अन्य कोई संगठन नहीं रखता, राज्य के एकाधिकार में आते हैं। राज्य के माध्यम से ही सामाजिक व्यवस्था स्थापित होती है एवं इसका अस्तित्व राज्य द्वारा स्थापित मानकों के आधार पर बनता है


राज्य और नागरिक समाज के बीच संबंध

मनुष्य के जीवन में राज्य एवं नागरिक समाज दोनों का विशेष महत्व है प्लेटो तथा अरस्तु राज्य व समाज में अंतर नहीं करते थे उनका विचार था कि राज्य ही समाज है और समाज ही राज्य है उस समय राज्य ना केवल एक राजनीतिक संगठन था बल्कि एक धार्मिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक समुदाय भी था

अतः समाज व राज्य में अंतर ना मानना स्वभाविक था मुसोलिनी ने भी कहा कि “सभी कुछ राज्य के अंतर्गत है राज्य के विरुद्ध या बाहर कुछ भी नहीं है”लेकिन मैकाइवर राज्य वह समाज को एक नहीं मानते थे


राज्य नागरिक समाज और लोकतंत्र

लोकतांत्रिक राज्य बने रहने की कुछ शर्ते हैं वह अवरोधक, थोपा हुआ ना हो वह नागरिक समाज को परिपूर्ण व्यवस्था में प्रस्तुत करे वह लोगों को उनके अधिकारों एवं स्वतंत्रताओं की गारंटी दे वह सार्वजनिक क्षेत्र में हर व्यक्ति को कार्य की अनुमति देंती थी प्रत्येक नागरिक राज्य पर समान दावा रखें नागरिक को मनुष्य के रूप में सम्मान मिले अंत में बार्कर के अनुसार समाज और राज्य एक दूसरे से संबंधित है यदि ऐसा ना होता तो राज्य की स्थापना ही नहीं होती



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.