B.A. FIRST YEAR ( POLITICAL SCIENCE ) CHAPTER- 5 IGNOU BPSC- 131 राजनीतिक सिद्धांत का परिचय CHAPTER- 5 / न्याय JUSTICE
0Eklavya Snatakअगस्त 25, 2021
न्याय का अर्थ एवं अवधारणा
न्याय को अंग्रेजी में जस्टिस कहते हैं यह लैटिन शब्दो ज्युगैर व जस से मिलकर बना है जिसका अर्थ है एक साथ गांठ बांधने से अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को अधिकारों व कर्तव्यों, पुरस्कारों व दण्ड का समुचित वितरण करके लोगों को संबंधों की एक उचित व्यवस्था में संगठित करना। जॉन रॉल्स कहते हैं न्याय ही सामाजिक संस्थाओं का सर्वप्रथम सद्गुण है भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारतीय लोकतांत्रिक गणतंत्र सभी नागरिकों हेतु न्याय आर्थिक सामाजिक व राजनीतिक मूल्यों को सुनिश्चित करने हेतु दृढ़प्रतिज्ञ है प्रस्तावना सूची में न्याय को स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा इन सबसे ऊपर रखा गया है।
यूनानी दार्शनिक अरस्तु ने न्याय को परिभाषित करते हुए कहा समानों का समानता से और असमानों का असमानता से उनकी असमानताओ के अनुपात में बर्ताव करना न्याय है अरस्तु ने न्याय के तीन प्रकार बताएं।
1- वितरणकारी न्याय
2- दोष निवारक न्याय
3- क्रम विनिमेय न्याय
न्याय के प्रकार
आर्थिक न्याय
समाज में रह रहे सभी व्यक्तियों की मौलिक आवश्यकता जैसे रोटी, कपड़ा और मकान की पूर्ति हो, आर्थिक व्यवस्था ऐसी हो जिसमें समाज के सभी व्यक्ति अपनी योग्यता अनुसार आजीविका कमा सके मानव कल्याण में सामाजिक कल्याण संबंधी कार्यों को बढ़ाना जैसे वृद्धावस्था पेंशन भविष्य निधि इत्यादि आर्थिक न्याय पर ही सामाजिक न्याय टिका हुआ है।
कानूनी न्याय
कानून के समक्ष किसी के साथ रंग रूप जाति धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा सभी को समान न्याय प्रदान होगा चाहे वह देश का प्रधानमंत्री हो या कोई झुग्गी में रहने वाला व्यक्ति।
राजनीतिक न्याय
राजनीतिक न्याय का अर्थ है कि समाज के प्रत्येक नागरिक जो राज्य का सदस्य है उसको मत देने का, चुनाव लड़ने का, राजनीतिक दल बनाने का, अपने अधिकारों की रक्षा करने का और सरकार की आलोचना करने का अधिकार है राजनीतिक न्याय व्यक्ति के सामाजिक अधिकार और मानव अधिकार की रक्षा भी करता है।
सामाजिक न्याय
सामाजिक न्याय से तात्पर्य है कि समाज में रहने वाले सभी व्यक्ति बिना किसी रंग रूप जाति लिंग धर्म के आधार पर भेदभाव के सम्मान प्राप्त करें और समाज में सुख शांति से अपना जीवन व्यतीत करें कई राष्ट्रों ने अपने राज्य के भीतर सामाजिक न्याय के लिए कई प्रकार के कानूनों का प्रावधान किया है उदाहरण के लिए भारतीय संविधान ने जाति पर आधारित छुआछूत की भावना को मिटाने के लिए अस्पृश्यता निवारक कानून बनाया है।
जॉन रॉल्स का न्याय सिद्धांत
जॉन रॉल्स अपनी पुस्तक थ्योरी ऑफ जस्टिस में न्याय संबंधी सिद्धांत के अंतर्गत समानता के सिद्धांत की बात करते हैं वह समाज में समानता कायम करना चाहते हैं क्योंकि जब समाज में समान अधिकार और समान स्वतंत्रता होगी तभी व्यक्तियों के बीच आपसी भेदभाव नहीं होगाजॉन रॉल्स संवैधानिक लोकतंत्र के पक्षधर है ऐसी सरकार व्यवस्था की बात करते हैं जो जन कल्याण के लिए जिम्मेदार हो संसाधनों को पूरी तरह से सुनियोजित करने तथा संपत्ति का उचित वितरण करने पर बल देते हैं। सभी व्यक्तियों को उसकी क्षमता अनुसार कार्य मिले समाज के न्यूनतम लाभान्वितो को अधिकतम लाभ पहुंचाने हेतु कार्य किया जाए तभी समाज में समानता कायम हो सकती है।
न्याय पर मार्क्सवादी विचार
मार्क्सवादी समाज को दो वर्गों में बटा हुआ मानते हैं शोषक वर्ग तथा शोषित वर्ग राज्य की सत्ता का प्रयोग शोषक वर्ग ने अपने हितों की पूर्ति के लिए तथा शोषित वर्ग को न्याय से वंचित रखने के लिए किया।मार्क्सवादी की न्याय की अवधारणा पूंजीपतियों की अवधारणा से मेल नहीं खाते पूंजीवादी समाज में न्याय और समानता की बात व्यर्थ है क्योंकि यह मानव और असमानता पर आधारित हैं मार्क्सवाद के अनुसार सभी व्यक्ति बराबर है लेकिन पूंजीवादी व्यवस्था में श्रमिक वर्ग को न्याय नहीं मिलता जो वास्तविक उत्पादन करता है मार्क्सवादियों के अनुसार न्याय की स्थापना के लिए पूंजीवादी राज्य को समाप्त करना आवश्यक है इसके लिए श्रमिक वर्गों को संगठित होना पड़ेगा।