न्याय का अर्थ एवं अवधारणा
न्याय को अंग्रेजी में जस्टिस कहते हैं यह लैटिन शब्दो ज्युगैर व जस से मिलकर बना है जिसका अर्थ है एक साथ गांठ बांधने से अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति को अधिकारों व कर्तव्यों, पुरस्कारों व दण्ड का समुचित वितरण करके लोगों को संबंधों की एक उचित व्यवस्था में संगठित करना। जॉन रॉल्स कहते हैं न्याय ही सामाजिक संस्थाओं का सर्वप्रथम सद्गुण है भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारतीय लोकतांत्रिक गणतंत्र सभी नागरिकों हेतु न्याय आर्थिक सामाजिक व राजनीतिक मूल्यों को सुनिश्चित करने हेतु दृढ़प्रतिज्ञ है प्रस्तावना सूची में न्याय को स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा इन सबसे ऊपर रखा गया है।
यूनानी दार्शनिक अरस्तु ने न्याय को परिभाषित करते हुए कहा समानों का समानता से और असमानों का असमानता से उनकी असमानताओ के अनुपात में बर्ताव करना न्याय है अरस्तु ने न्याय के तीन प्रकार बताएं।
1- वितरणकारी न्याय
2- दोष निवारक न्याय
3- क्रम विनिमेय न्याय
न्याय के प्रकार
आर्थिक न्याय