B.A. FIRST YEAR- ( IGNOU )CHAPTER 9 HISTORY BHIC- 131- भारत का इतिहास - (प्रारंभ से 300 ई. तक) CHAPTER 9- उत्तर वैदिक काल में परिवर्तन


उत्तर वैदिक काल

1000 ई.पू. से 600 ई. पू. के मध्य माना जाता है इस काल की जानकारी के लिए साहित्य और पुरातात्विक दोनों स्रोत उपलब्ध हैं इस काल में आर्यों का विस्तार गंगा के ऊपरी घाटी तथा उसके आसपास के क्षेत्रों तक हो गया था इस काल में आर्यों की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन हुआ  उन्होंने लोहे का प्रयोग करना सीखा जिससे उनकी अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ कृषि कार्यों का भी विस्तार हुआ


स्रोत

साहित्यिक स्रोत - ऋग्वेद का 10वा मंडल जिसे बाद में जोड़ा गया था सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद इस काल के साहित्यिक स्रोत हैं इन ग्रंथों से उस काल की जानकारी उपलब्ध होती है इसके अतिरिक्त ब्राह्मण ग्रंथ भी प्रमुख स्रोत है यह अनुष्ठानों के सामाजिक एवं धार्मिक पक्षों को उजागर करते हैं संस्कृत में लिखे गए दो महाकाव्य रामायण तथा  महाभारत तत्कालीन समाज के विविध पहलुओं के बारे में पर्याप्त जानकारी देते हैं


पुरातात्विक स्रोत

अभी तक ऊपरी गंगा घाटी में 700 से अधिक चित्रित धूसर मृदभांड के स्थलों की खुदाई हो चुकी है इनमें बहावलपुर, अतरंजीखेड़ा, हस्तिनापुर, कुरुक्षेत्र, भगवानपुर जखेड़ा आदि प्रमुख हैं इन क्षेत्रों में लोहे की वस्तुऐ सामान्यत: प्रचलित थी


सामाजिक जीवन

अब चार वर्ण व्यवस्था का वर्चस्व स्पष्ट रूप से सामने आया समाज अब असमानता पर आधारित हो गया ब्राह्मण समाज में सबसे उच्च तथा शुद्र सबसे निम्न थे इस काल में गोत्र संस्था का उदय हुआ सगोत्र विवाह अमान्य हो गए इस काल में पितृसत्तात्मक परिवार अच्छी प्रकार से स्थापित हो चुका था ब्रह्मचर्य, गृहस्थआश्रम, वानप्रस्थ, सन्यास आश्रम समाज में प्रचलित है


राजनीतिक परिवर्तन

इस काल में जन की जगह जनपद का प्रयोग होने लगा राष्ट्र शब्द का भी प्रयोग होने लगा था कबीले अब क्षेत्रीय पहचान बन गए उदाहरण के लिए कुरु तथा पांचाल एक में मिल गए समिति की अपेक्षा सभाए अधिक शक्तिशाली हो गई अब लड़ाई में लूट के लिए नहीं अपितु अधिपत्य स्थापित करने के लिए की जाने लगी ब्राह्मणों का महत्व बढ़ गया क्योंकि वह क्षेत्रीय अनुष्ठान कर राजा को वैधता प्रदान करते थे


धार्मिक जीवन 

पुरोहितवाद - जटिल अनुष्ठानों को संपन्न कराने के लिए व्यवसायिक लोगों की आवश्यकता थी जो इस कार्य में निपुण हो इसलिए नई सामाजिक व्यवस्था में पुरोहितवाद की उत्पत्ति हुई वह विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान करवाते यज्ञ को संपन्न करवाते और इसके बदले उन्हें अपार धन की प्राप्ति होती


उत्तर वैदिक काल के देवता 

इंद्र और अग्नि देवता का महत्व इस काल में कम हो गया प्रजापति महत्वपूर्ण देवता तथा रुद्र का महत्व बढ़ गया विष्णु को सृष्टि का रचयिता तथा संस्थापक समझा जाने लगा पूषण अब शुद्रो का देवता हो गया पहले वे पशुओं की रक्षा करता था


लोक परंपरा

अथर्ववेद से लोक परंपराओं की विशालता का पता चलता है यह समाज में व्याप्त विश्वासों और अंधविश्वासों पर आधारित ग्रंथ है बहुत सारे देवता, राक्षस तथा पिशाच सब की स्तुति की जाती थी तंत्र मंत्र तथा जादू टोना पर लोगों का विश्वास था इस काल में ब्राह्मणों के विरुद्ध एक कड़ी प्रतिक्रिया हुई


आर्थिक परिवर्तन

दोआब और मध्य गंगा घाटी की उपजाऊ जमीन के कारण कृषि का विकास आसान हो गया कृषि की पैदावार बढ़ने लगी लोहे के प्रयोग से जंगलों को साफ कर कृषि क्षेत्र का विस्तार किया गया लोहे के हल और कुदाल जैसे औजारों के प्रयोग से कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई उत्खनन से लोहे के नुकीले तीर, भाले आदि प्राप्त हुए मिश्रित कृषि अर्थव्यवस्था का प्रचलन हो गया अच्छी पैदावार के कारण राजसूय यज्ञ में दूध, घी तथा पशुओं के साथ अनाज भी चढ़ाए जाने लगा  साहित्य में 8,12 तथा 20 बैल तक जोते जाने के प्रमाण मिलते हैं


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