B.A. FIRST YEAR ( HISTORY ) Chapter- 6 IGNOU- BHIC 131 भारत का इतिहास (प्रारंभ से 300 ई. तक)- हड़प्पा सभ्यता : भौतिक विशेषताएं, संबंधों की प्रकृति, समाज तथा धर्म


भौतिक विशेषताएं

नगर योजना

व्हीलर और पिग्ट के अनुसार प्रत्येक नगर दो भागों में बटा था एक भाग ऊंचा दुर्ग था जिसमें शासक और राजघराने के लोग रहते थे दूसरा भाग निचले हिस्से में था जहां सामान्य जनसंख्या रहती थी हड़प्पा सभ्यता के शहर नदियों के किनारे, रेगिस्तान के किनारे तथा समुद्री तट पर स्थित थे सड़के एक दूसरे को समकोण पर काटती थी सड़कों और गलियों की बनावट ऐसी थी कि हवा से ही अपने आप साफ हो जाती थी एवं जल निकास प्रणाली भी सुनियोजित थी  हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में भवन निर्माण में पक्की ईंटों का  प्रयोग किया गया


मृदभांड (मिट्टी के बर्तन) 

हड़प्पा के मृदभांड बिल्कुल साधे हैं किंतु काफी बर्तनों पर लाल पट्टी के साथ काले रंग की चित्रकारी की गई हैइन चित्रों में पेड़ों की पत्तियां, तराजू जाली का काम, पीपल का वृक्ष, पक्षियों मछलियां, पशु इत्यादि शामिल है मिट्टी के कुछ बर्तनों पर मुद्रा के निशान से सभ्यता के व्यापार के बारे में ही पता चलता है


औजार और उपकरण  

इस सभ्यता में अनेक स्थलों से प्राप्त औजार तांबे, कांसे और पत्थर से बने हैं इनमें कुल्हाड़ी, छेनी, चाकू इत्यादि शामिल है बाद के चरणों में छुरी, चाकू और चपटे तथा तीखे नोक वाले औजार भी प्राप्त हुए इस सभ्यता के लोग कांसे की ढलाई की तकनीक से परिचित है


कला और शिल्प 

मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त सबसे महत्वपूर्ण कलाकृति का नमूना है। एक कांसे की नग्न मूर्ति यह मूर्ति नृत्य की मुद्रा में है कांसे और पक्की मिट्टी की प्रतिमा जैसे भेड़, बंदर, पक्षियों कुत्तों कूबड़ दार सांडो आदि तथा कांस्य की दो खिलौने कि गाड़ियां मिली इनमें से एक हड़प्पा तथा दूसरी चन्हूदरो से प्राप्त हुई मोहनजोदड़ो से प्राप्त दाढ़ी वाले सर की प्रतिमा भी प्रसिद्ध कलाकारी है। इस मूर्ति के चेहरे पर दाढ़ी है किंतु मूंछ नहीं है विद्वानों के अनुसार यह किसी पुजारी की प्रतिमा है। हड़प्पा सभ्यता के लोग सेलखड़ी, गोमेद, फिरोजा लाल पत्थर जैसे पत्थरों के बने मनको का प्रयोग करते थे। हड़प्पा सभ्यता की बस्तियों से 2,000 से अधिक मोहरे पाई गई यह  मोहरे चौकोर और गोल थी तथा सेलखड़ी से बनी थी।


सिंधु लिपि 

हड़प्पा सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता उसकी लिपि है यह लिपि सांकेतिक भाषा में लिखी हुई है यह चित्राक्षर लिपि है जिसमें प्रत्येक चित्र किसी वाक्य अथवा शब्द का प्रतीक है यह लेख बहुत संक्षिप्त तथा मुहरों पर पाए गए हैं इसलिए इसे पढ़ना और भी कठिन हो जाता है लिपि की लिखावट दाएं से बाएं और इस लिपि को पढ़ने में अभी तक सफलता नहीं मिली है


जीवन यापन का स्वरूप 

इस सभ्यता की आबादी कृषि उत्पादन पर निर्भर थी ये लोग भेड़, बकरिया, सूअर, भैंस आदि को पालते थे जंगली जानवर से भी लोग परिचित थे इस सभ्यता से दो किस्म के गेहूं और जौ की दो किसमें मिली मटर खजूर से भी लोग परिचित हैं मोहनजोदड़ो से सूती वस्त्र का साक्ष्य मिला है कालीबंगन से जुते हुए खेतों के साक्ष्य मिले हैं इसमें तेल और सरसों की खेती के साक्ष्य मिले


कच्चे माल के स्रोत

जोधपुरा ,बागोर और गणेश्वर संभवत हड़प्पा सभ्यता के लिए कच्चे माल जैसे तांबा प्राप्त करने के स्रोत रहे होंगे गणेश्वर में 400 से अधिक तांबे की तार 50 मछली पकड़ने के कांटे तथा 58 तांबे की कुल्हाड़ीया मिली


विनिमय व्यवस्था

हड़प्पा सभ्यता के लोगों ने आपसी विनिमय और व्यापार को नियंत्रित किया सभी क्षेत्रों में तोल की प्रणाली एक जैसी थी वह 1,2,4,8, 64 तथा 16 के गुणन का प्रयोग करते थे नापतोल के लिए


व्यापारिक संबंध

प्राचीन लेखों, मुहरो, कलात्मक वस्तुओं आदि से हड़प्पा सभ्यता के लोगों का फारस की खाड़ी और मेसोपोटामिया के साथ व्यापार होने का पता चलता है


परिवहन के साधन

हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहरो पर नाव और जहाजों के चित्र अंकित है लोथल से मिट्टी का एक खिलौना जहाज मिला रंगपुर, बालाकोट जैसे स्थान बाहरी व्यापार के लिए प्रयुक्त होते थे बैलगाड़ी परिवहन का अन्य साधन थी


सामाजिक जीवन

वेशभूषा - उनकी शारीरिक बनावट आज के निवासियों जैसी थी पुरुष अपने शरीर के निचले भाग को कपड़े से लपेटते थे व कंधे पर वस्त्र रखते थे और आभूषण का प्रयोग करते थे महिलाएं कमर पर गहने पहनती थी गले का हार और चूड़ियों का प्रयोग करती थी पुरुष एवं महिलाएं दोनों ही लंबे बाल रखते थे हड़प्पावासियों द्वारा खेल में चौसर का प्रयोग किया जाता है इसका साक्ष्य भी प्राप्त हुआ है


मुख्य व्यवसाय

मनके बनाना हड़प्पा वासियों का मुख्य व्यवसाय था मनके में विभिन्न प्रकार के बहुमूल्य पत्थरों का प्रयोग होता था  वे पत्थरों के औजार, कांस्य और तांबे के बर्तन ईट बनाना, मकान बनाने ,मुहरे बनाने इत्यादि का काम करते थे


धार्मिक जीवन

मोहनजोदड़ो में कई बड़े भवनों को मंदिरों के रूप में देखा गया है जिसमें पत्थर की मातृदेवी की मूर्तियां हैं मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल स्नानागार को धार्मिक क्रियाकलापों से जोड़ा जाता है इन मूर्ति में सबसे प्रसिद्ध आदि शिव की मूर्ति जो योगी की मुद्रा में बैठा है वह देवता बकरी हाथी शेर चीता हिरण से गिरा हुआ है मार्शल ने इसे पशुपति माना हड़प्पा सभ्यता के लोग प्रकृति की पूजा भी करते थे जिसमें वह वृक्षों की पूजा करते थे 



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