B.A. FIRST YEAR ( HISTORY ) CHAPTER 4 IGNOU- BHIC 131 भारत का इतिहास (प्रारंभ से 300 ई. तक)- शिकारी संग्रहकर्ता: पुरातात्विक परिप्रेक्ष्य, कृषि एवं पशुपालन का प्रारंभ

 


परिचय

मानव इतिहास  भू-वैज्ञानिक इतिहास का केवल एक छोटा सा भाग है मानव इतिहास का समय लगभग 20 लाख वर्ष ईसा पूर्व से 10,000 वर्ष 


ईसा पूर्व तक का रहा

पिछले 10,000 वर्षों से ही मानव समाज में महत्वपूर्ण विकास की प्रक्रिया एक गतिशील रही हैं वैज्ञानिकों के अनुसार पुरापाषाण युग को मानव का प्रारंभ माना गया है


पुरापाषाण युग

पुरापाषाण का अर्थ है पुराना पत्थर अर्थात पुराने पत्थर का युग जिस युग में मनुष्य पत्थरों के औजार बनाया करता था और उनके प्रयोग से शिकार किया करता था यह काल पुरातत्व की भाषा में पुरापाषाण युग कहलाता है भारतीय उपमहाद्वीप में मानवों का प्राचीनतम साक्ष्य लगभग 19 लाख वर्ष पूर्व पहले पाकिस्तान के रावलपिंडी से मिलता है 


पुरापाषाण युग को तीन भागों में बांटा जाता है

पूर्व पुरापाषाण काल लगभग 19 लाख वर्ष पहले मध्य पुरापाषाण कॉल लगभग 80,000 से 40,000 वर्ष ईसा पूर्व और पुरापाषाण काल 40,000 से 10,000 वर्ष ईसा पूर्व तक


पूर्व पुरापाषाण काल

पूर्व और मध्य-पुरा पाषाण युग में औजार बनाने की तकनीकी सरल थी पत्थरों एवं हड्डियों की सहायता से औजारों को बनाया जाता था शुरुआत में इनका आकार काफी बड़ा होता था लेकिन धीरे-धीरे इनका आकार छोटा होने लगा जो पुरापाषाण काल की विशेषता को बताता है पुरापाषाण और मध्य पाषाण का एक साक्ष्य कला है जो पत्थरों पर खुदाई पत्थरों की कटाई गुफाओं के भित्ति चित्रों और चट्टानी बसेरों के रूप में पाए गएमध्य भारत तथा उत्तर भारत में लद्दाख ऐसा क्षेत्र है जहां यह खुदाई के दौरान प्राप्त हुए प्रारंभिक चित्रकारी अधिकतर शिकार और संग्रह के दृश्य पर केंद्रित थी शिकार संग्रहण समाजों की सामाजिक संरचना राजस्थान के थार रेगिस्तान की एक झील के आसपास बूढ़ा पुष्कर के मध्य और उत्तर पुरापाषाण कालीन स्थलों में दस्तकारी के नमूने मिले जिन से यह संकेत मिलता है कि यह समय समय पर समूह शिविर लगाते थे 20-25 व्यक्ति का एक छोटा समूह या टोली जो परिवार उत्पादन की अनिवार्य कार्य होता था

मूल परिवार टोली की सीमा के अंदर रहता था और इस टोली का काम था भोजन के लिए शिकार करना, मछली मारना इत्यादि मध्य पाषाण काल में भरण पोषण की व्यापक रणनीतियो का परीक्षण हुआ शिकार संग्रहण और मछली मारने पर निर्भरता बढ़ी होगी मध्य पाषाण काल के कई संकेत जैसे पत्थरों के औजार, हथौड़े का पत्थर चक्की पिसाई का पत्थर, पशुओं की  हड्डिया में जंगली और पालतू दोनों किस्म के जानवरों की इत्यादि बेलन घाटी में चोपानी मांडो लगभग 6000 वर्ष ईसा पूर्व और राजस्थान में बागोर से लगभग 5000 से 2800 ईसा पूर्व से मिले मध्य पाषाण काल में कुछ बदलाव भी हुआ जैसे खाने योग्य पौधे में बदला हुआ  गेहूं और जों तथा भेड़ बकरियों को पालतू जानवर बनाया गया


नवपाषाण काल

मध्य पाषाण काल के बाद नवपाषाण युग में मनुष्य के जीवन में बहुत अधिक परिवर्तन आया यह पाषाण युग की तीसरी और अंतिम कड़ी है नवपाषाण युग का महत्वपूर्ण स्थल पाकिस्तान के बलूचिस्तान का मेहरगढ़ हैजो बोलन नदी के तट पर है इसमें युग में मनुष्य कृषि करना सीख गया था इस युग में मनुष्य का मस्तिष्क अधिक विकसित हो चुका था उसे अपने बौद्धिक विकास अनुभव पर और स्मृति का लाभ उठाकर अपने पूर्व काल के औजारों को काफी सुधार लिया वैज्ञानिकों ने इसमें आठ सांस्कृतिक स्तर दर्ज किए यहां पत्थरों के औजारों के साथ-साथ मिट्टी की ईट, पौधों के अवशेष और पशुओं को पालतू बनाने के साक्ष्य मिले


प्रारंभिक कृषि और पशुपालन

नवपाषाण युग का समाज एक जनजातीय समाज था जनजातीय का अर्थ होता है सामाजिक संगठन का एक विशेष चरण और एक विशेष प्रकार का समाज जिसमें सदस्यों की संख्या अधिक से अधिक 100 होती है एक जनजाति में अनेक गोत्र होते थे जो विभिन्न वंशो से बने होते हैं यह मूलतः समतावादी होते हैं


पौधों को पालतू बनाने की प्रक्रिया 

इसमें मनुष्य पशु और पौधों को एक नया आयाम देता है अपने पसंदीदा गुणों वाले पौधे और पशुओं के चयन करता है पौधों के मामले में गुण  ऐसे पौधे जो साथ-साथ उगने के अनुकूल हो एवं जल्दी उगते हो ऐसी फसल जो भंडारण की नमी और तापमान वाली अवस्थाओं को सहन करने में समर्थ हो बीज धारण धारण करने की क्षमता और स्वयं पौधे की संरचना सरल हो ऐसी फसल का चयन जो अधिक पैदावार देती हो और अधिक रोग प्रतिरोधक दिखाई देती हो


पशुओं को पालतू बनाने की प्रक्रिया

पशुओं को पालतू बनाया जाना भी एक लंबी प्रक्रिया थी सबसे पहले बकरियों और भेड़ों और सूअर को पालतू बनाया गया क्योंकि यह जानवर मनुष्य को अधिक सरलतापूर्वक स्वीकार कर सकते हैं इनका व्यवहार समर्पणशील होता हैयह पशु अपेक्षाकृत शांत और धीमे चलने वाले रसद ( भोजन योग्य सामग्री) खोजी हैं यह पशु एक ही मुखिया की अगुवाई में रहते हैं ऐसी प्रजातियां छोटे घरेलू क्षेत्र बनाती है अतः मनुष्य के नियंत्रण में सफलतापूर्वक रह सकते हैं


रॉक आर्ट

पुरातत्व में रॉक आर्ट मानव द्वारा निर्मित प्राकृतिक पत्थर पर अंकित चिन्ह है रॉक कला दुनिया के कई सांस्कृतिक रूप से विविध क्षेत्रों में पाई जाती है दुनिया में रॉक पेंटिंग्स की पहली खोज भारत में 1867-68 आर्कियोलॉजिस्ट आर्किबोल्ड कार्ललेईल द्वारा की गई थी जो स्पेन में अल्तमिरा की खोज से 12 साल पहले थी भारत में मध्य प्रदेश, (भीमबेटका) उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, बिहार और उत्तराखंड के कई जिले जिलो में स्थित गुफाओं की दीवारों पर शैल चित्रों के अवशेष मिले इन लोगों के द्वारा उपयोग में किए जाने वाले पेंट विभिन्न रंगीन चट्टानों को पीसकर बनाए गए थे सफेद और लाल रंग पसंदीदा रंग था। सफेद रंग चूना पत्थर से बनाते थे  लाल रंग भारत में जिसे गैरु के नाम से जानते हैंदृश्य मुख्य रूप से शिकार और लोगों के आर्थिक और सामाजिक जीवन से संबंधित थे वनस्पति और जीव व मानव पौराणिकता इत्यादि

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