B.A. FIRST YEAR ( HISTORY ) IGNOU- BHIC 131 CHAPTER 2nd भारत का इतिहास (प्रारंभ से 300 ई. तक) पुरातत्व एक साधन के रूप में तथा प्रमुख पुरातात्विक स्थल


परिचय

प्राचीन काल के लोगों के भौतिक जीवन, सामाजिक जीवन एवं आर्थिक जीवन की जानकारी प्राप्त करने के लिए पुरातत्व अत्यंत प्रमाणित साधन है पुरातत्व के अंतर्गत तीन प्रकार के साक्ष्य आते हैं


अभिलेख

अभिलेख अधिकांशतः स्तंभों, शिलाओ, ताम्रपत्र, मुद्राओं, पात्रों, मूर्तियों एवं गुफाओं आदि पर उत्खनित है सबसे प्राचीन अभिलेख जिन्हें पढ़ा जा सका है वह अशोक के हैं अशोक के अधिकांश अभिलेखों की भाषा प्राकृत है एवं लिपि ब्राह्मी है जो बाएं से दाएं लिखी जाती थी पाकिस्तान और अफगानिस्तान से प्राप्त अशोक के शिलालेखों में यूनानी और अमराइक लिपियों का प्रयोग हुआ है अशोक के अभिलेखों को पढ़ने में सर्वप्रथम सफलता 1837 ईस्वी में जेम्स प्रिंसेप को मिली सबसे अधिक प्राचीन अभिलेख 2500 ईसा पूर्व की हड़प्पा काल के हैं


अभिलेख अनेक प्रकार के हैं

कुछ अभिलेखों में अधिकारियों और जनता के लिए जारी किए गए सामाजिक,आर्थिक और प्रशासनिक राज्य आदेश एवं निर्णय की सूचना रहती है जैसे अशोक के अभिलेख दूसरे प्रकार के अभिलेख हैं जिन्हे बौद्ध, जैन, वैष्णव आदि संप्रदायों के अनुयायियों ने स्तंभों, पत्थरों, मंदिरों, एवं प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण कराया



तीसरे प्रकार के अभिलेख है जिनमें राजाओं की विजय प्रशस्तिओं का वर्णन किया है

प्रशस्ति अभिलेखों में प्रसिद्ध है खारवेल का हाथीगुंफा अभिलेख, रुद्रदमन का गिरनार जूनागढ़ अभिलेख, समुद्रगुप्त का हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग स्तंभ लेख आदि।


भूमि अनुदान पत्र

राजाओं और सामंतों द्वारा भिक्षुओं, ब्राह्मणों, मंदिरों, विहारो, जागीरदारों और अधिकारों को दिए गए भूमियों और राज्य से संबंधित दानों का विवरण तांबे की चादरों पर उत्कीर्ण है ये ताम्रपत्र प्राकृत, संस्कृत, तमिल एवं तेलुगू भाषाओं में लिखे गए हैं जो मध्यकालीन भारत की अर्थव्यवस्था को बताते है


मुद्राएं

206 ईसा पूर्व से लेकर 300 ईसवी तक के भारतीय इतिहास का ज्ञान हमें मुख्य रूप से मुद्राओं की सहायता से प्राप्त होता है यह सिक्के आहत सिक्के या पंचमार्क सिक्के कहलाते हैं धातु के टुकड़े पर ठप्पा मार कर बनाई गई बुधकालीन आहत मुद्राओं पर पेड़, मछली, सांड, हाथी, अर्धचंद्र आदि वस्तुओं की आकृतियां होती थी बाद के सिक्कों पर राजाओ और देवताओं के नाम तथा तिथियां उत्कीर्ण है सर्वाधिक मात्रा में मुद्राएं मौर्य काल में मिली जो सीसा, पोटीन, तांबा, कांस्य, चांदी तथा सोने की है गुप्त शासकों ने सबसे अधिक मात्रा में स्वर्ण सिक्के जारी किए मुद्राओं से तत्कालीन आर्थिक दशा तथा संबंधित राजाओं की व्यापारिक गतिविधियों का ज्ञान होता है


स्मारक एवं अवशेष

मूर्तिकला - गुप्त काल, गुप्तोत्तर काल और कुषाण काल में जो मूर्तियां निर्मित की गई उनसे साधारण-जन की धार्मिक आस्थाओं और मूर्तिकला का ज्ञान प्राप्त होता है कुषाण कालीन मूर्तियों में जहां विदेशी प्रभाव अधिक है वहीं गुप्तकालीन मूर्तियों में स्वभाव दिखाई देता है गुप्तोत्तर काल में सांकेतिक कला अधिक दिखाई देती है बोधगया, सांची और अमरावती की मूर्तिकला में जन सामान्य के जीवन की यथार्थ झांकी दिखाई देती है



चित्रकला

अजंता की गुफाओं में उत्कृष्ट माता और शिशु तथा मरणासन्न राजकुमारी के चित्र है जो गुप्तकालीन कलात्मक और तत्कालीन जीवन की झलक को बताती है


अवशेष

दक्षिण भारत में आरिकमेडू नामक स्थल की खुदाई से रोमन सिक्के, दीप का टुकड़ा, तथा बर्तन आदि मिले इससे यह स्पष्ट होता है कि ईशा की आरंभिक शताब्दियों में रोम तथा दक्षिण भारत के मध्य घनिष्ठ व्यापारिक संबंध था पाकिस्तान में सोहन नदी घाटी में चले उत्खनन कार्य से प्राप्त पुरापाषाण युग के पत्थर के खुरदरे हथियारों से अनुमान लगाया गया कि भारत में 400000 से 200000 वर्ष पूर्व मानव रहता था 10,000 से 6000 वर्ष ईसा पूर्व वह कृषि कार्य पशुपालन कपड़ा बोलना मिट्टी के बर्तन बनाना तथा पत्थर से औजार बनाना सीख गया था


कालीबंगा 

राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्थल है यहां खुदाई के दौरान एक दुर्ग मिला


धोलावीरा

गुजरात  में लगभग 15 वर्ष तक खनन कार्य चला जिसमें मिट्टी के टीलों के नीचे दबा एक पूरा शहर प्राप्त हुआइस महत्वपूर्ण खोज के पश्चात धोलावीरा गांव हड़प्पा काल के  धोलावीरा शहर के नाम से प्रसिद्ध हुआ


बनावली (हरियाणा )

हड़प्पा कालीन मिट्टी के उत्कृष्ट बर्तन सेलखड़ी की अनेक मोहरे, मृदभांड, ठप्पे, चूड़ियां मिट्टी से बना हल तथा कुछ नारी मूर्तियां मिली 


हस्तिनापुर 

उत्तर  प्रदेश  हुई खुदाई के आधार पर डॉक्टर बी.बी.लाल ने कहा कि महाभारत का युद्ध 1000 ईसा पूर्व हुआ इसी आधार पर भारत में लोह काल के आरंभ का अनुमान लगाया भारत में लोहे का प्रयोग 1100 ईसा पूर्व आरंभ हुआ था


सिंधु घाटी

से प्राप्त हुए खिलौनों, आभूषण, अशोक के स्तंभ, बौद्ध  प्रतिमाएं, मंदिरों के अवशेष, तांबे अथवा काशी की मूर्तियां, बाघ गुफाओं के भित्ति चित्र आदि सभी भारतीय इतिहास को जानने की अमूल्य सामग्री सिद्ध हुए

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