हिंदी भाषा : क्षेत्र एवं बोलियाँ
परिचय
भारत एक बहुभाषा / बहुभाषिक देश है, और बहुत-सी बोलियों उपबोलियों से हिंदी की समृद्धि हुई है। हिंदी के प्रयोग धर्मिता के स्तर पर इसके अलग-अलग क्षेत्र भी है। संविधान की 8वी अनुसूची में 22 भाषाओं को दर्ज भी किया गया है। जो राष्ट्रीय स्तर की भाषाएँ है। हिंदी का अपना एक साहित्यिक इतिहास है जो बहुत पुराना है। 1100-1200 वर्षो का इतिहास है। लेकिन साहित्य के इतर भी हिंदी के क्षेत्र रहे है- सम्पर्क भाषा के रूप में,विचार विनिमय की भाषा के रूप में और ज्ञान-विज्ञान आदि के क्षेत्र में भी हिंदी ने बहुत विस्तार किया है।
हिंदी की उपभाषाएँ , बोलिया
परिचय
हिंदी क्षेत्र की समस्त बोलियों को 5 वर्गों में बांटा गया है। इन वर्गों को उपभाषा कहा जाता है। इन उपभाषाओं के अंतर्गत ही हिंदी की 17 बोलियां आती है। वर्तमान काल में इसका व्यवहार उस विस्तृत भूखंड की भाषा के लिए होता है जो बिहार, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश तक फैली हुई है हिंदी की अनेक बोलियां /उपभाषाएं हैं इनमे से कुछ में अत्यंत उच्च श्रेणी के साहित्य की रचना हुई है : ब्रजभाषा, अवधि।
1. पश्चिमी हिंदी
- सर्वाधिक प्रमुख उपभाषा प्रमुख क्षेत्र : दिल्ली, ब्रज, हरियाणा, कन्नोज, बुंदेलखंड ब्रज भाषा में
- उच्च कोटि का काव्य प्रमुख बोलियाँ : खड़ी बोली, ब्रजभाषा, हरियाणवी, बुन्देली, कनौजी।
खड़ी बोली
प्रमुख क्षेत्र : मेरठ, बिजनौर, मुज्जफरनगर, मुरादाबाद, सहारनपुर, रामपुर साहित्य की दृष्टि से खड़ी बोली का साहित्य सर्वाधिक समृद्ध है कौरवी’ के क्षेत्र को पहले कुरु जनपद कहते थे।इसी आधार पर राहुल सांकृत्यायन ने इस बोली को ’कौरवी’ नाम दिया था। ’कौरवी’ में लोकगीत और लोकविताएँ मिलती हैं, परन्तु उच्च साहित्य मानक हिन्दी में ही मिलता है।कौरवी’ रामपुर, मुरादाबाद, बिजनौर, मेरठ, मुजफ्फर-नगर, सहारनपुर, देहरादून के मैदानी भाग, अम्बाला (पूर्वी भाग) और पटियाला के पूर्वी भाग में बोली जाती है।
व्याकरण :-
इस बोली के आदि अक्षरों में ’स्वरलोप’ होता है; जैसे गूंठा (अंगूठा), ठाना (उठाना), लाज (इलाज), कट्ठा (इकट्ठा), खसबू (खूश्बू), तम (तुम) इत्यादि। इसमें दीर्घ स्वरों के बाद भी व्यंजन का द्वित्व रूप होता है; जैसे गाड्डी (गाङी), बेट्टा (बेटा), सज्जा (सजा) आदि। कौरवी’ में मूर्धनय ध्वनियों की अधिकता है; जैसे- देणा, लेणा,
हरियाणवी
हरियाणा प्रदेश की बोली को हरियाणवी कहा जाता है यह बोली दिल्ली के कुछ हिस्सों में, करनाल, रोहतक, अम्बाला आदि जिलों में बोली जाती है हरियाणवी थोड़ी सरल होती है इसे दो भागों में बांटा जा सकता है : उत्तर हरियाणा की और दक्षिण हरियाणा की ग्रियर्सन ने हरियाणी को ’बाँगरू’ नाम दिया। इस क्षेत्र में जाटों का बाहुल्य हैं, इसलिए इस बोली को ’जाटू’ भी कहते हैं। हरियाणी में लोकसाहित्य पर्याप्त है, परन्तु लिखित साहित्य का अभाव सा है।
व्याकरण
हरियाणवी और खड़ी बोली में बहुत कम अंतर है ध्वनियां सब वही है जो कौरवी में प्रयोग की जाती है। क्रिया में दो बाते ध्यान देने योग्य है एक तो सहायक क्रिया है। स,सो,से,सू,सा ,हिंदी में- हैं।,हूँ, हो और हरयाणवी में- सै, सूँ, सो,से उदाहरण एक आदमी कै दो छोरे थे। तब उसका बड़ा छोरा खेत में था मैं उठा कै अपने बापू धोरे चलाँ/ चलू सूँ।
ब्रजभाषा
ब्रजभूमि में बोले जाने वाली भाषा प्रमुख क्षेत्र मथुरा, वृन्दावन, आगरा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, बुलंदशहर, बदायूं सूर, बिहारी, देव, घनानंद समेत पूरा रीतिकाल जगन्नाथदास रत्नाकर जैसे कवियों के साहित्य से ब्रजभाषा समृद्ध है। ब्रज का अर्थ है पशुओं या गायों का समूह या चारागाह, पशुपालन की प्रधानता के कारण यह क्षेत्र ब्रज कहलाया और इसकी बोली ब्रजी कहलायी। ब्रज एक बोली है फिर भी इसे ब्रजभाषा कहते हैं इसका कारण यह है कि मध्य युग में साहित्यिक भाषा थी।
व्याकरण
इसकी औकारान्तप्रवृत्ति, जैसे- आयौ, गयौ, खायौ, कारौ, पीरो, अच्छौ, बुरौ आदि। ब्रजभाषा में में आकारांत की जगह ओकारांत की प्रवृत्ति भीपाई जाती है, जैसे- घोड़ा की जगह घोरा, भला की जगहभलो, बड़ा की जगह बड़ो आदि।
ब्रजभाषा में व्यंजनांत की जगह उकारांत प्रवृत्ति मिलताहै, जैसे- 'सब्' की जगह 'सबु', 'घर्' की जगह 'घरु' आदि। 'न्' की जगह 'ल' का प्रयोग होता है, जैसे- 'नम्बरदार' कीजगह 'लम्बरदार'।
कन्नौजी
प्रमुख क्षेत्र पश्चिमी उत्तरप्रदेश का इटावा, फर्रुखाबाद, शाहजहाँ पुर आदि जिले कानपुर, हरदोई भी कनौजी के क्षेत्र हैं। यह ब्रजभाषा और बुन्देली के बीच का क्षेत्र है। खोटो, छोटो, मेरो, बइठो – उदाहरण
बुन्देली
बुन्देलखण्ड की बोली को बुन्देली कहा जाता है। प्रमुख क्षेत्र : झांसी, जालौन, सागर, होशंगाबाद, भोपाल बुंदेली राजपूतों का प्रदेश होने के कारण इस क्षेत्र को बुंदेलखंड और इसकी भाषा को बुंदेलखंडी या बुंदेली कहा जाता है। बुंदेली में लोक साहित्य पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है जिसमें 'इशुरी फाग' बहुत प्रसिद्ध है। उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश की सीमा के साथ झांसी, जालौन, हमीरपुर, बांदाप, छतरपुर, सागर, ग्वालियर, भोपाल, ओरछा, नरसिंहपुर सिवनी, होशंगाबाद तथा उसके निकटवर्ती भूभाग को बुंदेलखंड कहते हैं, तथा इसकी बोली को बुंदेली कहा जाता है।
व्याकरण
बुंदेली में 10 स्वरों के अनुनासिक रूप भी मिलते हैं।उदाहरण:- अँगूठा-ऊँठा ; नाखून-न्यौ व्यंजनों में महाप्राण की जगह अल्प्राण की प्रवृत्ति दिखाई देती है।उदाहरण:- जीभ - जीबदूध-दूदहाथ -हात
पूर्वी हिंदी
पूर्वी हिंदी में तीन बोलियाँ हैं अवधि, बघेली, छत्तीसगढ़ी पूर्वी हिंदी का हिंदी में विशेष स्थान है क्योंकि इसमें तुलसीदास एवं रामचरितमानस जैसी कृतियाँ हैं। ग्रियर्सन पूर्वी हिंदी की उत्पत्ति अर्धमागधी अपभ्रंश से मानते हैं। वहीं धीरेन्द्र वर्मा (हिंदी साहित्यकोश) के अनुसार- पूर्वी हिंदी का विकास मागधी अपभ्रंश से हुआ है। पूर्वी हिंदी की प्रमुख बोलियां :-
1) अवधी
2) बघेली
3) छत्तीसगढ़ी
अवधि
अवध की बोली को अवधि कहा गया है। प्रमुख क्षेत्र लखनऊ, उन्नाव, रायबरेली, फैजाबाद, प्रतापगढ़, इलाहबाद, फतेहपुर रामभक्ति शाखा का केंद्र अवध मंडल ही रहा है प्रमुख कवि तुलसीदास थे अवध का प्राचीन नाम कोसल था अतः अवधी को को कोसली नाम से भी जाना जाता है।मध्यकालीन हिंदी साहित्य में अवधी भाषा का विकास शिखर पर था ।
वर्तमान क्षेत्र
वर्तमान समय में अवधी फैजाबाद, सुल्तानपुर, बाराबंखी, अंबेडकर नगर, लखनऊ, उन्नाव रायबरेली, सीतापुर, लखीनपुर खीरी ,इलाहाबाद फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, बलरामपुर, श्रावस्ती गोंडा, बहराइच, बस्ती, वाराणसी, मिर्जापुर तथा जौनपुर के क्षेत्र में बोली जाती है। इसके अतिरिक्त भारत के बाहर फ़िजी, त्रिनिडाड गुयाना, मॉरीशस और दुबई में भी इस बोली को बोलने वालो की संख्या अधिक रूप में है।
व्याकरण
खड़ी बोली की तुलना में अवधी के स्वरों की मात्रा कुछ कम होती है। अवधी में 'ण' के स्थान पर 'न' हो जाता है और 'ड़’ के स्थान पर ‘र’ हो जाता है ।
उदाहरण :- ष > ख हो जाएगा
भाषा > भाखा
भूषण > भूखन
बघेली
बघेलखंड को बोली को बघेली कहा गया है बघेली में रीवा, जबलपुर , मांडवा , बालाघाट आदि जिले आते हैं बघेली में लोक साहित्य मिलता है बघेली का उद्भव अर्धमगधी अपभ्रंश के एक रूप से हुआ है। बघेली को अवधी की दक्षिणी शाखा कह सकते हैं।रीवा तथा आसपास के क्षेत्र बघेल राजपूतों के वर्चस्व के कारण बघेलखंड कहलाया और वहां की बोली बघेली या बघेलखंडी कहलायी।
व्याकरण
अवधी की अपेक्षा बघेली में 'व'से 'ब' उच्चारण करने की प्रवृत्ति अधिक है। परसर्गों में कर्म संप्रदान (क,के, का) इनके अतिरिक्त कहा और करण आपादान में (ते) के अतिरिक्त तार बोला या लिखा जाता है।
मुझे > म्वॉ, मोही
तुझे > त्वॉ, तोही
छतीसगढ़ी
छतीसगढ़ की बोली को छतीसगढ़ी कहा गया है |मध्यप्रदेश के रायपुर, विलासपुर जिले इसके प्रमुख केंद्र हैं ।मध्य प्रदेश के पूर्वोत्तर में पलामू (बिहार) की सीमा से लेकर दक्षिण में बस्तर तक और पश्चिम में बघेलखंड को छूता हुआ और पूर्व में उड़ीसा की सीमा तक फैला हुआ जो क्षेत्र है उसे वर्तमान में छत्तीसगढ़ के नाम से जाना जाता है ।
क्षेत्र : इसका शेत्र सरगुजा, कोरिया, बिलासपुर, रायगढ़, रायपुर दुर्ग नंदगांव, कांकेर आदि क्षेत्रों में बोली जाती है।इस भाषा में कई आदिवासी गीत लिखे गए हैं ।इस क्षेत्र में कई लाख आदिवासी रहते हैं उनकी बोलियों पर मराठी, तेलुगु और उड़िया का प्रभाव भी देखा जा सकता है।
व्याकरण
इस बोली में महाप्राणीकरण अधिक दिखाई देता है इसके साथ-साथ अघोषीकरण भी बहुतायत रूप में होता है। उदाहरण:- स > छ
राजस्थानी
राजस्थानी हिंदी की प्रमुख उपभाषा है। राजस्थानी उपभाषा में चार बोलियाँ हैं
1. मेवाती
2. मालवी
3. जयपुरी
4. मारवाड़ी (मेवाड़ी)
3. राजस्थानी
जार्ज ग्रियर्सन ने राजस्थानी उपभाषा को 6 बोलियों में विभाजित किया है - मारवाड़ी (पश्चिमी राजस्थानी), मेवाती (उत्तर-पूर्वी राजस्थानी), जयपुरी (मध्य-पूर्वी राजस्थानी), मालवी (दक्षिण-पूर्वी राजस्थानी), नीमाड़ी (दक्षिणी राजस्थानी) तथा अहीरवाटी। परंतु अधिकतर विद्वान मारवाड़ी, जयपुरी, मेवातीऔर मालवी को ही राजस्थानी की बोलियाँ मानते हैं। क्योंकि अधिक विभाजन करने से बोलियों की संख्या अधिक हो जाती है जबकि ये बोलियां एक-दूसरे से काफी समानता रखती हैं।
मारवाड़ी
राजस्थान की पश्चिमी बोली का नाम मारवाड़ी है इसका केंद्र मारवाड़ है
प्रमुख क्षेत्र : जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, उदयपुर हिंदी साहित्य की वीरगाथाएं मारवाड़ी में ही लिखी गई हैं।