हिंदी सिनेमा की अंतर्वस्तु
जिस तरह साहित्य समाज का मार्गदर्शक है उसी तरह सिनेमा भी समाज का मार्गदर्शक है साहित्य और सिनेमा दोनों में बेहद गहरा संबंध है सिनेमा की अंतर्वस्तु लोगों को अत्यधिक प्रभावित करता है सिनेमा हमारे समक्ष नई-नई दृष्टि प्रस्तुत करता है ताकि हम दुनिया को नए तरीके से देखें समझे अपने दृष्टिकोण का विकास करें फ्रांस के दार्शनिक जियदलज ने कहा कि सिनेमा में इतनी ताकत है कि वह दर्शनशास्त्र भी बदल सकता है इस बदलने का कारण उसकी बौद्धिकता नहीं अपितु भावनात्मक क्षमता है।
एक दर्शक पर्दे के पीछे एवं पर्दे पर दिखाए जाने वाले आकृतियों को किसी सुनिश्चित दृष्टिकोण से जानने समझने की प्रवृत्ति से प्राय मुक्त करा चुका होता है यही कारण है कि यह एक बहुत ज्यादा प्रभावशाली माध्यम के रूप में हमारे समक्ष आज उपस्थित है भारत में सिनेमा की शुरुआत बीसवीं सदी से हुई शुरुआत में भारतीय सिनेमा की अंतर्वस्तु में गांव व उनकी समस्याओं को अच्छी तरह उजागर किया 1974 में श्याम बेनेगल की फिल्म “अंकुर” की प्रशंसा सभी ने कि यह फिल्म पूरी तरह ग्रामीण परिवेश की थी तथा वहां के प्रेम भाव को दिखाने में सक्षम थी 1970 से 80 के दशक के बाद हिंदी सिनेमा में एंग्री यंग मैन की शुरुआत हुई।
अमिताभ बच्चन ,राजेश खन्ना जैसे सुपरस्टार थे जिनकी कई फिल्मों ने यह बताया कि समाज में केवल प्रेम से काम नहीं चलता सामाजिक आर्थिक राजनीतिक परिदृश्य भी उतने ही आवश्यक होते हैं 90 के दशक के बाद जब भारत पर वैश्वीकरण का प्रभाव देखा गया जिससे कई तरह के बदलाव भारत में आए जैसे खान-पान वेशभूषा बोली भाषा आदि यह सब बदलाव उस दौर की फिल्मों में दिखाया गया जैसे भारतीय सिनेमा में आइटम गीत की शुरुआत 1997 खलनायक फिल्म से हुई।
हिंदी सिनेमा और तकनीकी
सिनेमैटोग्राफर (कैमरामैन)
कैमरा तथा कैमरामैन के बिना फिल्म नहीं बन सकती वह सभी कार्य जो कैमरे की तकनीकी से होते हैं जैसे कैमरा स्टैंड, फिल्म स्पीड, लेंस चुनाव ,फ्रेम कंपोजीशन ,कैमरा कोन आदि सभी कार्य कैमरामैन को आना अति आवश्यक है निर्देशक कैमरामैन और कलाकारों में अच्छी आपसी समझ होने की जरूरत होती है इसलिए ज्यादा निर्देशक चुनिंदा कैमरामैन को ही अपने साथ रखते हैं।
लाइट व्यवस्था
लाइट अवस्था फिल्म तकनीकी पक्ष का एक महत्वपूर्ण अंग है हर सीन के अनुरूप लाइट व्यवस्था की जाती है इंडोर शूटिंग के लिए बड़े-बड़े पावर बल्ब की जरूरत होती है इसके अलावा बड़े-बड़े रिफ्लेक्टर का प्रयोग भी लाइट व्यवस्था के अंतर्गत किया जाता है।
डबिंग
संपादन की अंतिम रूपरेखा के अनुसार साउंड रिकॉर्डिंग स्टूडियो में हर एक कलाकार से उनके संवाद कहलवाए जाते हैं। इस प्रक्रिया को डबिंग कहते है शूटिंग के समय संवाद बोलने में यदि कोई कमी रह गई हो या उच्चारण में कोई गलती हुई हो तो डबिंग के समय उसे सुधारने अवसर मिलता है।
साउंड इफेक्ट